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बागुरुयणम्मिकटमाणवणागिरिखाधारणामिकरिष्मणरजागाहारयणमयमझदासणस मठापामावऽपरमाणंद जिगणपक्षणपरिचित्रकारीतहिशवसरकंपिउंगायरान शियाणा यूपनधितणमुणि जसंदरहिजिणख
नामविमतिकडच सपिउँमाप्रतिवालकिंवासाणुउदेश्द
नाठाविद्याधरणि
वतादाकाट्यावरस उतातिअगदाण परतणविमुक्कधरतदम्या
नगरीधरणदीही पारनविमलमूर्णिमा सामंदमतिसादा नपरेसु मदिवसंतामिददेश्य देसवमाएं मुगामवतन्त्रवकिपिछलावा घरवश्यावश्कृस्महि तिकृयायपाड पसहिमिहि शाहिजताकाविरुदलक एलणापरवाश्यानीलकायकमाजि सात सापावटजातश्लाकणाडासापानजसजसळगयमासासापतिउजससखशवदासाधना द्वार
गुरुजन के प्रति किया गया उनका मान का परित्याग वैसा ही शोभित हुआ है जैसे गिरिवर के विदारण में मन्त्रियों से सेवित नरेश अथवा राजा सन्तुष्ट होने पर देश देता है। देशपति ग्राम देता है, ग्रामपति क्षेत्र देता हाथी के दाँतों का भंजन सोहता है। उस अवसर पर जिसका शरीर जिनवर के पुण्यरूपी पवन से स्पृष्ट है, है, और क्षेत्रपति (खेत का मालिक) कुछ तो भी प्रस्थभर (एक माप) चावल देता है, और गृहपति (गृहस्थ) और जो पद्मावती के आनन्द का कारण है ऐसा नागराज धरणेन्द्र अपने रत्नमय सिंहासन के साथ काँप उठा। एक मुट्ठी चावल देता है। त्रिभुवनपति तो प्रजाओं के लिए सृष्टि प्रकट करता है। यदि प्रार्थना ही करनी हो अपने अवधिज्ञान का प्रयोग कर उसने जान लिया जो कुछ सालों (नमि और विनमि) ने जिनवर के सामने तो किसी बड़े से की जाये, क्योंकि किसी छोटे से की गयी प्रार्थना से वह (प्रार्थना) सुन्दर होती है। लो, कहा था। भुवनसूर्य (ऋषभ जिन) से ये मूर्ख क्या माँगते हैं, वे जब देते हैं तो त्रिभुवन का दान कर देते हैं। इन कुमारों ने अच्छा किया कि इन्होंने उनसे प्रार्थना की कि जो त्रिलोकनाथ हैं। उनसे प्रार्थना की जिनका परन्तु उन्होंने तो गृहस्थधर्म का त्याग कर दिया है और पवित्र मुनिधर्म प्रारम्भ कर दिया है। सामन्त और यश विश्वप्रसिद्ध है। उनसे प्रार्थना की जिनका दास इन्द्र है।
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