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णावासणा खगसदिटनादाहिया आसण्यरहणंटलिसंखमज्ञाणिउँउमारनपवंच ययालुमूणवित्रवयरिंडपछुदायहठयासुपसणसमाजाकशलयन्सुरहिएण देवणिशा श्याणियाहिएण एवहिसादासश्चठसमाणु परिवर्तनपविनविहाणाँधलोलियबावडा काचिगवडजाइमुविसखयर मसिहा पारवहनपजहाणाणदाराम्यान, नायवमणकमाखारहिंलिस यावरणालावमाणपिणियाछिया मास्यामेवा। माणधअधयवडचियो गुणिपाशक्षिणायणहणिम्पियाळामदासमके पविकणसहाय दासहर सुखरसचणे सरलहराजाधिरदिडियरवसहरिणतलाइवकरपापियहरिपाठ जं गयागणल्म्गसिगरु यसल्हिासनसिरंगरउखयपुलिंदर्कदारुणय हरिणदह सकरिबंदारुणाने सादपलगालायरसह सररमणावादियाईसाद वीरासिमखसरीवादण योडमधटपकड़ववाहपद नरवसरियलयादटावरकरपायपियाही संदरसि यवकरनामरस रवियरवियसाविनतामर विसरियहारलारिसमर्दिया जिणपडिमाकसम | हिमामदिय चारणमुणिदेसियधम्मसुझझरशारिणिशरवाहसुशफणिवयणविमुकविस
विजयाध पर्वत पर आश्रित उत्तर-दक्षिण विद्याधर श्रेणियाँ प्रदान कर देना। आसन के काँपने से मेरा शरीरबन्ध (ऋषभ जिन) को नमन कर ऋषभनाथ का प्रिय आलपन न पानेवाले वे दोनों देव विमान के द्वारा विजयार्ध शैल हिल गया, (उससे) मैंने तुम्हारा प्रपंच जान लिया। पाताल छोड़कर मैं यहाँ अवतरित हुआ हूँ, मैं अरहन्त पर ले जाये गये, जो सरोवर का जल धारण करनेवाला था, जिसमें युद्ध करते हुए वृषभ, सिंह और नकुल घूम देव की आज्ञा पूरी करने में समर्थ हूँ। अपने हृदय से ध्यान किया है जिन्होंने, ऐसे देव के द्वारा (ऋषभ) रहे थे। हरिणों का समूह दुर्वाकुरों से प्रसन्न था, जिसके शिखर आकाश को छूते थे, महान्, जिसने अपनी जो उन्हें खण्डित करता है या सुरभि से लेप करता है, वह इस समय निश्चित रूप से समान भाव से देखा औषधियों से प्राणियों के शिर और शरीर से रोग दूर कर दिया था, जो शवरों द्वारा उखाड़े गये मूलों से अरुण जाता है, उन्होंने पहले का विधान (प्रशासन) छोड़ दिया है।
थे, जो सिंहों के नखों से आहत हाथियों के मस्तक से भयंकर थे, जहाँ भयंकर अष्टापद सिंहों का पीछा कर ___घत्ता-जल्दी आओ, देर क्यों करते हो, योगी को छोड़कर, प्रभु के द्वारा आदिष्ट और मेरे द्वारा निर्मित रहे थे, जिसमें सुररमणियाँ हंसरथों को हाँक रही थीं, जिसके तीर पर विद्याधरियों के वाहन स्थित थे। जिसमें विद्याधरों सहित नगरियाँ हैं, उनका भोग करो''॥९॥
वृक्षों के संघर्ष से उत्पन्न आग प्रज्वलित थी। जिसके लताघर नूपुरों की झंकार से झंकृत थे, और श्रेष्ठ विद्याधर
अपनी प्रियाओं के अधरों का पान कर रहे थे, जो अपनी वधुओं में अनुरक्त देवों के सुख का प्रदर्शन कर रहा १०
था, जिसमें रविकिरणों से कमल खिल रहे थे, जिसमें खोये हुए हारों से धरती पटी पड़ी थी, जो जिन भगवान् इन वचनों को कुमार वीरों ने चाहा। केवल उन्होंने आकाश में विमान देखा। हवा से दौड़ते हुए और प्रकम्पित की प्रतिमाओं की महिमा से पूज्य था, जो चारणमुनियों के द्वारा उपदिष्ट धर्म से पवित्र था जिसमें झरझर निर्झरों ध्वजपटों से अंचित जिसे, गुणी नागराज ने शीघ्र निर्मित किया था। अपने दोषों के प्रारम्भ का नाश करनेवाले का अबाध प्रवाह था, जिसमें नागों के मुखों से निकली हुई विषाग्नि शान्त थी,
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