________________
गारखे उपडि कूलमा जाकना सा कमायम लुतामसिका लेग घाणिवंदेर विपणि देवि गातमुपखालिङ, मिरायो णिच मिसहाय दो मुट्ससिविंदुगिहालि उ॥ चावला तेदिप पिसासुहाण म हिमहिदा स्त्रिण पत्रोसिकिंदणं कस मसुसी लिमा-श्रम्हाण समुहं अणिमिसलो यहिंकि पेसीमासता सिया मिरिंड तंसिणविपडिपइफणि ड हनणेयसिद्धि गायराठे जंसारि।। धार्मसिउति जगतां लोनचामुकुसुमसरता याख। एक देउमदारउसामिसालु (अश्या)
इणिवेनमकर नश्यनिपण मुद्रक दिक्सपेसियकेण विकारणेण विहलियजड जीउहारगण यहितिवविणमिविष्णमिणाम मश्मग्गार्हिति सिरिसारकम नुकहिजसुताद
और रौरव नरक में नारकी हुआ हूँ। हे जिन, बीते समय में तुमसे जो मैंने प्रतिकूलता की थी, उसे मैंने क्रम से भोगा है।
घत्ता- इसप्रकार जिनकी वन्दना कर और अपनी निन्दा कर, नाग ने अपना तम (पापतम) धो लिया। और फिर विनमि है सहायक जिसका, ऐसे नमि महाराज का मुखरूपी चन्द्रबिम्ब देखा ॥ ८ ॥
९
उन्होंने कहा, "हे सदा सुखकर सर्पराज, धरती फाड़कर आप वन में आये। हे सुशील, तुम हमारे सम्मुख
Jain Education International
घरइनमिविनमि
कमारामार
For Private & Personal Use Only
दापनं
धरडपद्मावती चादिनाथ तिव
रण।।
क्यों हो और अपलक नेत्रों से मुख किसलिए देख रहे हो?" तब समस्त अमित नरेन्द्रों को सन्त्रस्त करनेवाला फणीन्द्र यह सुनकर बोला, "मैं भुवन में प्रसिद्ध नागराज हूँ, इन्द्र के द्वारा प्रणम्य त्रिजगत्तात, लोकोत्तम, कामदेव का अन्त करनेवाले यह हमारे स्वामी श्रेष्ठ हैं। जब यह राज्य छोड़कर विरक्त हुए तब इन्होंने मुझसे एक काम कहा था कि विकल और जड़ जीव का उद्धार करने के किसी काम से भेजे गये कोई नमि-विनमि नाम के दो जन आयेंगे, श्री और सुख की कामना रखनेवाले जो मुझसे कुछ माँगेंगे। तुम उन लोगों के लिए
www.jainelibrary.org