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पिबलमापासमतपुकंचाजपक्विपडिवलनामाखवितासाङपहिडातंहनकरमिणमुपगच्या चली।गरलायमितहमिहरकोदकारण जायकिलणमिसकयावयणाचवतादातरूणामदा दलासपरिसदसणमिण्डदाऽणिफलाड़यावाणिगमणमधरणेयकसलस्टिाडिम वर फारफ्डाकपारफकारखालिय समहिमटिहगमटिहारुदकंदापणणिग्रयकरहरि वर हरिजंगलिगलविनासियमासियमनवहार कुंजरघडलवरणपरिपत्रणपाख्यिरुही। -पयडया रखधधखराणिहसणरुपजालिंङयवदानवहविकगिजालाबालिजल्लियसमेत कापर्ण काणपसमिसनमुणितावसमेक्षियसपलसुण्यपासुखणसरिखकालमजलधारा ख्यिसविउलेबरं अबस्यलफरततडदेडाहरलाचकबुर कदरदिववकविकिपुलावन झ्य। संद संदायलवलगाविसदमुहलालियविनचेदाणाचदणकसुमधुसिणफलदलाल लंडलउवाणियबाण अवणकामसामफणिरामारंसियसरसणवणाणवणमिलिमललियला लाभरललणालालयमहलामहालयाविलावचल्लाकाकाणकलकलयलसपसलीपायवर विधाहरतरुपादया जलथलकपकारिणावियडफणाहिरुदसूडामणिकवल्लयसारधारिणा।
घत्ता-जो निश्चलमन हैं, तृण और कंचन में समभाव धारण करते हैं, जिन्होंने धन का परित्याग कर के कारण वृक्षों से आग प्रचलित हो उठी है, आग के स्फुलिंगों और ज्वालावलियों से समस्त कानन जल दिया है। चूंकि उन्होंने उन मोक्षार्थी से अभ्यर्थना की है, इसलिए मैं उन्हें अशून्य करता हूँ॥६॥ चुका है, जिसमें कानन में बैठे हुए मुनियों के सन्ताप से देवता आशंकित हो उठे हैं। देवजनों के द्वारा भरित
मेघों की जलधाराओं से विशाल अम्बर आपूरित है। आकाशतल में चमकते हुए विद्युदण्डवाले इन्द्रधनुष से
रंग-बिरंगापन है। जिसमें रंग-बिरंगे दिव्य वस्त्रों से विस्तीर्ण चंदोवों से रथ आच्छादित हैं, जिसमें रथों के वे (नमि-विनमि) मनुष्यलोक में हैं। मैं यहाँ हूँ। फिर भी वे क्षोभ के कारण हुए। इनसे पुण्य की क्या तल भागों से लगे हुए विषधरों के मुखों से विन्ध्या के चन्दनवृक्ष चुम्बित हैं, जिसमें चन्दन-पुष्प-केशरअवतारणा कहूँ? बिना कहे हुए ही वृक्ष महाफल देते हैं, सुपुरुष का दर्शन भी निष्फल नहीं होता। तब फल-दल-जल और अक्षत से पूजा की गयी है, जिसमें पूजा की कामना से नागराज की पत्नी पद्मावती के नागराज ने जिनवर का स्मरण किया और निर्गमन (कूच) किया। जिसमें फैले हुए फण समूहों के फूत्कार द्वारा सरस नृत्य प्रारम्भ किया गया है । जिसमें नृत्य में मिली हुई सुन्दर देवांगनाओं की करधनियाँ च्युत हैं, से धरती सहित पहाड़ों को हिला दिया गया है, महीधर की बड़ी-बड़ी गुफाओं के हिलने से क्रूर सिंहवर जो करधनियों से लटकती हुई किंकिणियों की कलकल ध्वनि से कोमल है। इस प्रकार वर-विवर कुहर बाहर निकल पड़े हैं, जिसमें सिंहों को गर्जनाओं के शब्दों से मत्त हाथी त्रस्त और नष्ट हो गये हैं। हाथियों वृक्ष आकाशतल को कम्पित करनेवाले, तथा विकट फनों पर अधिष्ठित चूड़ामणि पर पृथ्वीमण्डल का भार के चंचल पैरों के आघात से स्पष्ट रूप से वृक्ष उखड़ गये हैं। वृक्षों के स्कन्धों के बन्धों के तीव्र संघर्षण उठानेवाले,
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