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पडकमकमलणमियाण मितिणमिणर हिवसोज्जहारण बन्त्रिसमागण्णादिहे । रिसदे। गर लूदा किरमलेषिण थुनेमा ड्युलर कर्हि मुहघुलियाह। अखर जी इर्दिदस सय सरक॥ श्रवला कॅना मुहाला इरलाय लालसा ध्रुवावर होश्मोहोमली मर्स जश्द वयणवारिणा पोस सित्रयाता कह जियश्मय सिद्धियालिनदी अमरपुर सुंदरीणाम के दे। इसियधरासमोउसि यणियागमो सो सिजमइमलो पोसियमही यलो मय जति कावयव सावित्र चाक्सियन्त्र खंचिमविद्याथन संचिय विराज लुंचियसिगेरु वंचियरगाहो विनाश्व हो अवियजसा वह मखइखोह नेत्रावर कंडिस कुसंग खंडिग इंडियसइदिन पंडिमर्चदिन तवरणप रिटारो जमकरण लहरो समसरणास्यतरण पोट सागणी सिडचिंतामणा संपजा संगम धमाकुप्पमा लवणासाला सियाणासा सिवे। चित्रतम दो इणेादामविज्ञ ईजिणो पावदार हरो तंपराणं परो। देवदेव। नम) ताहिदा मम । पिम्गुणाणिद्दणो डम्मइणि ग्घिणो परदयवास गहियपरगास जीवासास माणडेमेन्छन । रोहिन रिंच आहेस এ0
प्रभु चरणकमलों में नत नमि-विनमि राजाओं को आश्चर्य प्रदान करनेवाले, नागराज ने शीघ्र आकर ऋषभनाथ के दर्शन किये।
घत्ता-आकर फन मोड़कर लाखों स्तुतियों और मुँह में घूमती हुई, अक्षरों की तरह सुन्दर दस हजार जिह्वाओं से स्तुति की ॥ ७ ॥
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यह भुवनरूपी वन, जो कान्ताओं का मुख देखनेवाला, भोग का लालची और मैला है, इसे मोह जलाकर खाक कर देता। यदि तुम्हारे वचनरूपी जल से यह नहीं सींचा जाता तो कामरूपी आग से प्रदीप्त यह विश्व कैसे जी सकता है? आप गृहस्थाश्रम को दूषित करनेवाले, अपने आगम को भूषित करनेवाले, बुद्धि के मैल को नष्ट करनेवाले, महातल का पोषण करनेवाले, मदरूपी गज को नियंत्रित करनेवाले, व्रतों का प्रवर्तन
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करनेवाले, भविष्य को जीतनेवाले, अपने शरीर को सन्तप्त करनेवाले, विषाद को नष्ट करनेवाले, विराग को संचित करनेवाले, केश लोंच करनेवाले, दुराग्रह से दूर रहनेवाले, गति के मार्ग को संकुचित करनेवाले, यश का पथ अंकित करनेवाले, लक्ष्मी को क्षुब्ध करनेवाले, आपत्तियों को रोकनेवाले, कुसंगति को छोड़नेवाले, काम को खण्डित करनेवाले, अपनी इन्द्रियों को दण्डित करनेवाले, पण्डितों के द्वारा वन्दनीय, तपश्चरण के परिग्रहवाले यम को भय उत्पन्न करनेवाले, उपशम के घर, संसार तरण के पोत (जहाज), सच्चे ज्ञान में अग्रणी, सिद्ध चिन्तामणि, सम्पदा से असंगम करनेवाले, धर्म के कल्पवृक्ष, भव (संसार) का नाश करनेवाले भव, शिव को प्रकाशित करनेवाले शिव, चित्त के तम समूह को नष्ट करनेवाले सूर्य, दोषों के विजेता जिन, पाप का हरण करनेवाले हर और श्रेष्ठों में श्रेष्ठ हे देवदेव, आप मुझ दीन का त्राण करें। मैं निर्गुण, निर्धन, दुर्मति, निर्धिन, दूसरे के घर में वास करनेवाला, दूसरों के घर का कौर खानेवाला में मानव, म्लेच्छ, मत्स्य और रीछ हुआ हूँ, भव भव में।
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