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गगन विंचाणिजश्योनलगाउ ढोनुणिवसणषणपसरण तपताचणणाणावरणलय यादिनाममन्नई मोहनिबंधणायवगमसंतहाकिम्वतिरसोल्बशवामड्यहरणाच्छा फुलाइंदाउपद्धवसंसावजिए मलक्लेिविसारिलविलेवएन।पजालियापश्वास सासरावलावधगायधमनियातनटीसश्सकसमासझणमलपडलचिलखताख डा.दहिर्वक्रखंदण सिंयसिहयचंदाणे वेदिविमयपरियारलसिवियारुहरडारखा आदिनाथकईया। लासपया
झामजयन वदीक्षालेणवळा
लकीवदाश्कार ददि पदम
बाश्यसिवि यणरिददि
तन्निनजिया विणणवता
हिंवरविज्ञा होहिंविदा
संतहिं नहिय देवमहाका एवंदारपहि
णियपदयाला
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क्या वर्णन किया जाये? लाया गया और पहना गया वह, शरीर को इस प्रकार सन्तप्त करता है मानो ज्ञानावरण कर्म हो। दिये गये आभूषणों को वह स्वीकार नहीं करते, उनकी मोह के बन्धनों की तरह उपेक्षा करते हैं, दही, दूर्वांकुर और चन्दन, श्वेत सिद्धार्थ (पीला सरसों) और रक्त चन्दन की वन्दना कर कामदेव का रस से आई, काम के प्रहरण (शस्त्र) पुष्प सन्त को किस प्रकार अच्छे लग सकते हैं। यह काफी है। जिन नाश करनेवाले आदरणीय ऋषभ पालकी में बैठ गये। अब विश्ववन्द्य नरेन्द्रों ने सात कदमों तक शिविका विलेपन की सम्भावनाएँ, मलविलेप की सदृशता के रूप में करते हैं।
को उठाया। उतने ही कदम भावपूर्वक नमस्कार करते हुए और हँसते हुए विद्याधरों ने उठायी। हो रहा है घत्ता-चन्द्रमा और सूर्य के समान कान्तिवाले प्रज्वलित प्रदीपों से निकलता हुआ धूप के अंगारों का देवों का महान् आकुल कुल-कुल शब्द जिसमें ऐसे आकाश में फिर देवगण उसे ले गये। धुआँ ऐसा दिखाई देता है मानो सुकवि मलपटल विशेष को बाँट रहा है ।। २३॥
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