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उत्तणुसरणश्करणमाणिनिपानिमयसिमितिमिरणितणविधवासहोयासहोणसही मासेरवि विहदतमसममणधरवि सहलाहमाकरिविवरािणियानणाशिववहाणिधगणे विणारि संकवितशिविससिक सयवमणाजणणालविदिक छम्मासमेदमुणिमरुधारा अ गसणुमसणागिरिधिगहीस कमडवलपविमल विहळिमेरु परंतरतरकारविड ठहर डाणावडसहायखयाण यासासियासियापसिंयादयतलगावगपसारादळखयात फर्णिदणरिदमहिला णिहंडणिोडविमुकतंडलंबिधालुउमुरघुउजिणवरिडायलावस्त पुसिरिणकेचणागिरि जगगुरुडचितमंथन थिउसमाहाअवियपवणहामंधारोहणायघड़े। 27 श्रावला विसयक्सालिसाळहातावसासिया सासणवग्यसिंहसरहडितासिया असममा वयामिलम महारहतेसग्नादिणहिलसहियपरीसहानामगफ्यावलाणामदोश्रणात उसकामहामदाह एयरतिएचसमारुहदहा णग्याणणालणसूसाणवासी पइपाणिवर लश्णाहारगासणसानण्हवाएणजिन्होमहवे णॉणिहाएमुकापसम्हापसंतागजपैशणालो यएकिंपिसि णिमाथिरसहिनावाणिव पवाणमिकिचिवचित्रमा मर्यकम्मिसंजोर
शरीर का पोषण करनेवाली इन्द्रियों को जीतकर, मद की सेना और अन्धकार को नष्ट कर, गृहवास के बन्धन से निकलकर, विघटित होते हुए मन को धारण कर, लोभ और मोह के साथ वैर का अन्त कर, नारी को जिन महारथियों ने उनके साथ व्रत ग्रहण किये थे, विषयों के वशीभूत वे प्यास-भूख के सन्ताप से शोषित अपनी माँ और बहन के समान समझकर, शंका छोड़कर स्वयं शिक्षाओं को समझते हुए, श्रुत वचनोंवाली तथा भीषण बाघों, सिंहों और शरभों के द्वारा सन्त्रस्त होकर कुछ ही दिनों में परीषह नहीं सहने के कारण जैन दीक्षा लेकर, छह माह की मर्यादावाला कठोर अनशन लेकर, मेरु के समान धीर और गम्भीर, पवित्र शीघ्र भ्रष्ट हो गये । शास्त्रों का अभ्यास नहीं करनेवाले महामन्द बुद्धि तथा श्रम से अवरुद्ध शरीरवाले वे इस दोनों पैरों के मध्य एक बीता (बालिश्त) अन्तर रखकर, छिद्ररहित ओठपुट से मुख को बन्द कर, मुखपर प्रकार कहने लगे, "न स्नान, न फूल, न भूषा और न वास, प्रभु न पानी लेते हैं और न आहार का कौर।
आश्रित नाकपर नेत्रों को धारण कर, भ्रूभंग और कटाक्षों के प्रसंगों से रहित, नागेन्द्रों, विद्याधरेन्द्रों और नरेन्द्रों वह महान् शीत और उष्ण हवा के द्वारा भी नहीं जीते जाते और न नींद, भूख और प्यास से श्रान्त होते हैं। द्वारा पूजित, निर्द्वन्द्व, आलस्य से रहित लम्बे हाथ किये हुए मनुष्य श्रेष्ठ वह जिनवरेन्द्र देवों के द्वारा संस्तुत किसी अनुचर से न बोलते हैं और न किसी भृत्य को देखते हैं, अपने हाथ ऊपर किये हुए वह इस प्रकार थे।
नित्य स्थित रहते हैं। मैं नहीं जानता कि वह अपने चित्त में क्या सोचते हैं? मुझे अत्यन्त दुःसाध्य काम में घत्ता-श्रेष्ठ शरीर की शोभा में जो मानो कंचनगिरि के समान थे पापों का नाश करनेवाले वह जगद्गुरु लगा दिया है। इस प्रकार स्थित थे मानो वह स्वर्ग और मोक्ष के लिए चढ़ने का मार्ग हो॥१॥
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