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काविसहायहोतणिमणिह अपणनचर्किएछतरसि धरुजावितपिलरक्षा खामायादिनाथ
कराम अमानतुसंसरमिपवघरजापवित्रालिंगमिकल अपनहाल कथात्मक
विवारस तावनमध्या लिलमयद
भामुनिषदाई
इसासुजाणिकर करनिया
तपस्मानाना सरखपाहस पिणुपियामि ताम्राताप गवळजाठा
जामाला पकमागागुरुकाविहसिविण्ठवपरमेसहाम्लवियाकरू एकजेवणकिदमुच शाश्वाचिलानिजतससिम्मिसिजश्ससासम वहतं मिजास्खुटावयपाय अछामोनामिए
कौन इनकी तपस्या को सहन कर सकता है। किसी एक ने कहा-मैं यहाँ क्यों मरूँ? घर जाकर अपना राज पत्ता-मान में श्रेष्ठ एक व्यक्ति ने कहा-अपने हाथ ऊपर किये हुए भगवान् को वन में अकेला किस करूँ? किसी एक ने कहा-मैं अपने पुत्र को याद करता हूँ, घर जाकर अपनी स्त्री का आलिंगन करता हूँ। प्रकार छोड़ दिया जाये? ॥३॥ किसी एक ने कहा-भ्रमरों से चुम्बित और मकरन्द से प्रतिबिम्बित जल को सरोवर में प्रवेश कर तबतक पीता हूँ कि जबतक प्यास नहीं जाती।
चन्द्रमा के क्षीण होने पर उसका शश (चिह्न) भी क्षीण हो जाता है और चन्द्रमा के बढने पर वह भी बढ़ती के अपने प्रिय पद पर पहुँच जाता है। हम दण्ड सहन करते हैं, वन में ही रहें।
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