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उसके पीछे-पीछे श्री से सेवित मरुदेवी के साथ नाभि राजा चले। कमल के नवदलों के समान सुन्दर अंगवाली यशोवती और सुनन्दा भी पीछे लग गयीं। मोह से नवेली दोनों ऐसी लगती थीं मानो काम ने दो बरछियाँ (भल्लियाँ) छोड़ी हों। प्रिय के विछोह के शोक से खेद को प्राप्त होता हुआ, नेत्रों के अंजनमल से मैला होता हुआ, श्रेष्ठ कटिसूत्रों के समूह से गिरता हुआ, शरीर के प्रस्वेद बिन्दुओं से आर्द्र होता हुआ, शीघ्र चलता हुआ, स्खलित होता हुआ, शिथिल निःश्वास लेता हुआ, चंचल और बिखरे हुए बालोंवाला, सघन स्तन युगल पर करतल रखता हुआ, गिरने से धरती को कैंपाता हुआ, पैरों के संचालन से नूपुरों को झंकृत करता हुआ समस्त अन्त:पुर दौड़ा। एक बार परिपूर्ण भावोंवाले देवों के द्वारा ले जाये गये थे और अभिषेक के बाद प्रासाद में ले आये गये थे। फिर इसी क्रम से वह आयेंगे और राजा ऋषभ इसी नगर में रहेंगे।
घत्ता-पौरजनों ने यह कहा और अपने मन में सोचा कि अब उनका आना कठिन है। जड़, मैले और खराब वस्त्र धारण करनेवाली धरतीरूपी महिला स्वामी के बिना कैसे जीवित रह सकती है।॥२४॥
जो भरत और बाहुबलि के समान हैं, जिनके मुख से अश्रुधारा बह रही है, और जिन्होंने हाथी और घोड़ों को प्रेरित किया है, ऐसे एक कम सौ, अर्थात् निन्यानवे पुत्र चले। जिनेश्वर ऋषभ उस वन में पहुंचे, जो आम और नालक वृक्षों से सघन था, जो अच्छे पत्तोंवाले लक्ष्मी वृक्षों से शोभित था, जिसमें विशाल लताजाल से सूर्य की आभा का पथ रोक दिया गया था। जो महामुनियों के योग्य था, जो पापभाव का नाश करनेवाला था, जिसमें फलों के ऊपर गिरते हुए बाल वानरों की आवाजें हो रही थीं, जो अपनी प्रियतमाओं से रहित कामुकों के लिए बाणभेदन करनेवाले थे, जिसमें लतागृहों में रहनेवाली किन्नरियों से मनुष्य अनुरक्त हैं, अशोक और चम्पा वृक्षों की अत्यन्त रमणीय शोभा से नया दिखाई देता था, जो उगे हुए बालकन्दों के अंकुरों से कोमल है, जहाँ कुसुमों के पराग से मिश्रित जल बह रहा है, जो दिशाओं में उछलते हुए हाथियों के मदजलों से सुवासित है। क्रीड़ा करते हुए नागराजों, दानवों और शत्रुओं का जिसमें निवास है,
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