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सदहमयरमुहविन कडियलियणकिरणाविलरिया वझकडिसन्नउसकंकुरियावरसु सरयवर्ति लरथारुपडा वितशिलतश्वडणवदाविठाहरिकरिससिरविवानिवशबियाशवम कजरान्पसार्य
सिंहासनालापन
सरथचक्रराजग धश्परिनु कमलईछ
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सिसिसिणि सयवतम यमायगता
मुलकणयु जयगहकाणापवियरकणाघनामिवानाथाहायचंपगाडि त्रासावायाण दिलाहकमारहामहितवारहो बापटुणेरसहिशिखंडनासादासणसिंहासिनीसाहा।
और सिर पर मधुकरों के मुखों से चुम्बित शेखर । रत्लकिरणों से चमकता हुआ कटिसूत्र कमर में छुरी के घत्ता-स्वामी के इन अनुराग चिह्नों और आशीर्वाद वचनों के निर्घोषों के साथ राजाओं ने पट्ट ऊँचा साथ बाँध दिया गया। उरतल पर सुन्दर ब्रह्मसूत्र (यज्ञोपवीत) चढ़ा दिया गया। तिलक तीसरे नेत्र के समान किया और पृथ्वी के राजा श्री भरतकुमार को बाँध दिया॥२१॥ दिखाई दिया। सिंह, हाथी, चन्द्रमा और सूर्य के रूपों से निबद्ध विमल चिह्न (कुलचिह्न) उठा लिये गये। मल से रहित धवल छत्र ऐसे प्रतीत होते थे, मानो जिनेन्द्र की कीर्तिरूपी कमलिनी के कमल हों। मदगज, लक्षणोंवाले घोड़े, ग्रह और विचक्षण कानीन (कन्यापुत्र) पूजे गये।
विश्व के द्वारा प्रशंसित तथा सिंहासन के शिखर पर आसीन वह ऐसा शोभित होता है
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