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सणसाहेवीपंचमारसंणिमुणविकमारेखाउ देवदेवकिंसणिउंछाडनाउछहमुशिया प्राडोर नसाकमायणादOMARAAMADIRumal छारसंघावडासणणणि
न्यायादिनाथवर विहातमसुकुहरिवाढीव
थादिषबुला इहही जमकरछागाच्या
कविज्यसपत्र वृतहा सनसाखगयबंधहिं जंतदो अंपायहियाउन्नय यनादियानन्तसाकुमाल सहाळाहिरा मंतिमहासणव अनुज पहिणतायाकी राधना जंपियउजिपिसाणामविसमें जश्पडपयहेमडनाश लालानरउहीडशविमोमो मठ्वखनशाणखेडया कुरुकस्वस्खीपालणाणायाणायणिदालणं धरिधरिमहिवाश्सासणा ६
मैं पाँचवीं गति (मोक्षगति) का साधन करूँगा।" यह सुनकर कुमार बोला, "हे देवदेव, यह क्या अयुक्त कहते हैं, तुम्हारे खाने से छोड़े गये आहार में जो सुख है, वह सुख भोजन के विस्तार में नहीं है ; तुम्हारे आसन के निकट बैठने में जो सुख है वह सुख सिंहासन पर बैठने में नहीं है। तुम्हारे सामने दौड़ते हुए मुझे जो सुख है वह सुख हाथी के कन्धों पर जाते हुए नहीं है। तुम्हारे पैरों की छाया ने मुझमें जो सुख प्रकट किया है, छत्र की छाया से वह सुख मुझे प्राप्त नहीं है । मन्त्री और महासेनापति के द्वारा पूज्य तुम्हारे नहीं
रहने पर, हे तात राज्य से क्या?"
घत्ता-यह जानकर जिनेश्वर ने विशेष रूप से कहा-"यदि तुम्हें राजा का पद अच्छा नहीं लगता तो जबरदस्ती भयंकर युद्ध कर मछली के द्वारा मछली की तरह एक दूसरे को खा जायेंगे ॥२०॥
इसलिए तुम धरती का पालन करो, न्याय-अन्याय को देखो। राजा के शासन को स्वीकार करो
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