________________
कम्मचियारणाधारक्षितानियालिदामलमहिमताहिकमगागरापरिशियायसुसममिण मससमविलयमहापारणाहरक्सिोलापढणवणक्षणवापिजझ्यवणिसहाका मशनरवमसुट्टहासपुवाटायुविवणवलयेसणसम्प्राणुविधयाकुसालकाराजार वितणु यमक्रमसंजोगवठजणु कम्मरहिमनगेसहमश्धम्मविवजिउतपिनकिशमति हाणेसुमनुहिरचना लिकपकपालणएशसना श्चतठरिसमक्षकामाउगलुराणाहियारिखसा रियकर प्राथविजनिकाविळारे गासपडझेपरिवार पवियणणतासुमश्यसरण कल इणचिपरियषपारिसगुण सहवासणसालाणवळ चवदारणसचमुणवठे जाणवाण एपेसिविचर कल हमाणियसासयपर सामलेयधणदहसमाग निरजङ्गजसुजोर ग्गाधना निमाकडावापरकजविाकम्पहरकसश्णु जापधठामाणेवळ पनिठपक्षपद्ध नगरविता कुणासुसकलसवरिनिवपसियपणिहापंडिविज्ञापमापरिक्षयासमामि नसतोसमरसमाणयहाणयाळाडविजविजणध्वसमुदाजयुतिविहसन्निसबाउकरेला सुसरिकटठप्पलिमविमुगिजासु निग्गडधवरचणुग्गजसुसमितुमशविहावहि ८३
कि वह चर भेजकर यह जाने कि शत्रु कितना क्रुद्ध, लोभी, घमण्डी और भीरु है। साम, भेद, धन और दण्ड विगलित पापबुद्धिवाले मन्त्रियों के द्वारा कुमार्ग में जानेवालों की रक्षा की जाये। हे नरनाथ, जिस प्रकार के आने पर जो जिस योग्य हो वह उसके साथ शीघ्र करना चाहिए। गाय, पशु आदि जानवरों का पालन किया जाता है उसी प्रकार इस समस्त धरती-मण्डल का परिपालन करना पत्ता-अपना कार्य, पराया कार्य और कार्याध्यक्षों की पवित्रता को जानना और मानना चाहिए। हे पुत्र, चाहिए। पढ़ना, हवन करना, दान देना और वाणिज्य यह वैश्यों का अनवद्य कर्म है। शूद्रों का काम है, वार्ता यही प्रभुत्व है ॥१०॥ का अनुष्ठान और वर्णत्रय की आज्ञा मानना और उनका सम्मान करना। नटविद्या, शिल्प-आजीविका आदि के कामों में लोगों को लगाना चाहिए। दुनिया में भला आदमी बिना कर्म के भोग नहीं करता। लेकिन धर्म
११ से रहित कर्म भी नहीं करना चाहिए. मन्त्री के स्थान में कुल एवं बुद्धि से हीन लोगों को नहीं रखना चाहिए, पापबुद्धि रखनेवाले शत्रु राजाओं के प्रति प्रेषित चरपुरुषों का प्रतिविधान किया जाये । स्वजनों, परिजनों हिंसक और दुष्ट लोगों को ग्रामादि के पालन में नहीं रखना चाहिए। अन्त:पुर में प्रमादी और कामातुरों, लोभी और मित्रों के लिए सन्तोष कर सम्मान दान देना चाहिए । जनता के दो प्रकार के उपसर्गों को दूर करना चाहिए,
और हाथ पसारनेवालों को भाण्डागार की रक्षा में नहीं रखना चाहिए। विस्तार से क्या, दुष्ट परिवार से राजा तीन प्रकार का शक्ति सद्भाव (मन्त्र, उत्साह और प्रभु शक्ति) करना चाहिए। क्षयग्रस्त और उपेक्षित का भी नाश को प्राप्त होता है, प्रतिवचनों से उसकी बुद्धि का प्रसार करना चाहिए, कलह में परिजनों का पुरुषार्थ विचार किया जाये, निग्रह और अनुग्रह दोनों किये जायें। शत्रु-मित्र और मध्यस्थ का भी (राजा) विचार गुण नहीं है । सहवास से ही शील को जानना चाहिए, व्यवहार से ही पवित्रता जानी जाती है। राजा को चाहिए करे।
wwww.jainelibrary.org
Jain Education Internation
For Private & Personal use only
85