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ममेरे विहो ऽसुरुतुरु व छत्रा जिणधम्मपरं मुझे इमयसम्मुकं खवका लेप्रो डिउ । वह्नविहम सम | इट मिळते कोल दगडूणिपप्राविडये । तिप्पसारस ठाणी चह हस्तपमा जीवाजीव सुसंकुल निस्सं पिच मिला थिउाया सच्ची वागतय केवलाय विलोयणखेन यगाद्गाढ छहिदवहिंरुरियन के चिकिया केषविधरियन पुग्गलजी व्लान कजलेलहि काल घूमे जाइपजायदि पढिल दाण भूर्रयाणिवासन प्ल्हथियसरावर्स कासना नायना मनतिरिकन वानमुपजच परिघोलण काप्याकष्णदेवणेन तमगुमुइंगसा रिछन मोरकुनिप्रायवत्त्रसन्निदमरु जोतपुत्त्रु सो अजरामर परमाणु परमाणुणपे कमि संसा रियो मुखु किं धरकमित्रा च गदेसवंते पुए गुहांत विहसचिवें नर सुहइकणि रतरो लिजंग शेत्तरे जानें काई खाउं खंडया। सारमेय हो गया। सारमेय सिवजाग्गर्स एसो कुम्म कलेवर माईतदविकलेवरं हिलहि कुडलपि अनादी हरणउणिवंधण चत्रभा पॅसिलियाउलाहिंघण घडिस्क संधि देसंधिदेखील डिंजटिल पडियंस र्व सुष्पयमाण्ठं जंघा जयलु समाडिया मंस चिकिल्ल चिलित न वडवारले हियर्स सित सेयमुकमचिक
इस प्रकार मरते हैं और देव वृक्ष बनते हैं।
घत्ता - जिनधर्म से विमुख, दुर्नयों के प्रति उन्मुख क्षयकाल में नष्ट हुआ कौन मनुष्य विविध मदों से भी सुख नहीं देखता । मत्त मिथ्यात्व के द्वारा गहन संसार में नहीं डाला जाता ॥ १० ॥
११
शराब आदि की आकृतिवाला और चौदह राजू प्रमाण, तथा जीब और अजीव (द्रव्यों) से अच्छी तरह व्याप्त यह विश्व नित्य और निश्चल है। अनादि-अनन्त तथा केवलज्ञान के अवलोकन का विषय आकाश में स्थित है। जो सघन रूप से छह द्रव्यों से भरा हुआ है। उसे किसी ने बनाया नहीं हैं, और न किसी ने उसे उठा रखा है। पुद्गल जीव और भाव से निर्मित पर्यायों से काल के वंश से परिणमित होता रहता है। पहला (अधोलोक) दानव और नरकों का निवास है जो उलटे सकोरे के आकार का है। दूसरा (मध्यलोक) वज्र के समान मनुष्यों का घर है। जिसमें पदार्थों (जीवादिकों) की प्रवृत्तियाँ होती रहती हैं। तीसरा लोक (ऊर्ध्वलोक) मृदंग के आकार का है, और जिसमें कल्प-अकल्प देवों का निवास है। मोक्ष भी छत्ते के आकार
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का है जो वहाँ पहुँच जाता है, वह अजर-अमर है संसारी के सुख का क्या वर्णन करूँ, मैं उसे परमाणुमात्र
धत्ता - देव ने (गौतम गणधर ने) हँसकर कहा-चार गतियों में मरते हुए और बार-बार उत्पन्न होते हुए इस जीव ने सुख-दुःख से निरन्तर भरपूर इस त्रिलोक के भीतर क्या नहीं भोगा ? ॥ ११ ॥
१२
प्रचुर मेदा के बढ़ने पर यह जीव कुत्ता और श्रृंगाल के योग्य शरीरवाला बनता है। तब भी यह जीव संसार में उस शरीर को श्रेष्ठ मानता है। हड्डियोंरूपी लकड़ियों के ढाँचे पर निर्मित, लम्बी-लम्बी स्नायुओं से बँधा हुआ, पसलियोंरूपी तुलाओं से अच्छी तरह कसा हुआ, जोड़ों-जोड़ों पर कीलों से जड़ा हुआ, पीठरूपी बाँस के खम्भे पर उन्नत मानवाला, मुड़ी हुई थूनियों की तरह जाँघोंवाला, मज्जा और मांस की कीचड़ से लिपटा हुआ, रक्त से रंगे हुए नौ द्वारवाला, प्रस्वेद शुक्र और अस्थियों से
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