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श्रवरुविजायन उववण्ठाणए जोइस कप्पणिवा सचिमाण वाढवेला लिउळन्त्रिय धल्वा इाज वायनस शेयर नचणुगादणु सुइसुहदावन। अणुविहो सम्भव सावन धरमरपुर उडिजाइ वेवश्व घुलपरिखा हा कण्डम हामो सुसर दाणीदार हारसन्निद घर हाइकरमलमण पदपरियणपडिवरक निराह हाचलिपलियरामसयमचया हा हानि देहदाववयाहाले कारसार सहसरुवा दागभोरमइखाणाख हादेवगवळ निचुल | हामंदारदामचल सलसल छत्रा सम्मन्त्रविमुक्का जिपको वर्सेहियसझई स ग्गु मुयंत।। पल योजतो कादिवड या सुललियम इंलिय वेलयं अट अश्विनमालय सोय विरामनिधयं जायं महत्वस चिंध्यं ॥ खासयल जिपाहिसेय धर्म दें यधूमधूवियगिरिकंवर दादें कुलिसपाणि जगसुंदर पईमिनररिक उदेवपुरंदर दाम माणुसे हो यवन किमिमलल शेवसेवड् साणिविणिग्गमणि यवन पारिक दरवी रुपिया दाहादवलायकिपेठमि कल्किलेवरे वाणइ कमि जाउ मसाण होतंमपुत्र वरिवणदोस मिचंदवदा श्रहावसं वाश्ये मिळादिडिमुदिहिविनश्वं दादा हा नुनयिकरूप ५७
और दूसरा उपवन स्थान तथा ज्योतिष कल्पवास विमानों में उत्पन्न हुआ वाहन वैतालिक छत्रधारी वाद्य बजानेवाला भाँड आदि होता है। कानों को सुख देनेवाला नृत्य और गायन करनेवाला असम्यक्बाला होता है। वह भी मरते हुए की चिन्ता करता है, काँपता है, चलता है और खेद को प्राप्त होता है। हाय, कल्पवृक्ष, हाय मानस सरोवर, हाय नीहार के समान घर। हाय अप्सरा कुल का मन सम्मोहन करनेवाले, हाय परिजन और प्रतिपक्ष का निरोध करनेवाले। इस त्रिबलि बुढ़ापा और सैकड़ों रोगों के संचय का नाश करनेवाले, हाय दिव्य देह और नव वय । हाय, सहोत्पन्न अलंकार श्रेष्ठ हाय, मधुर वीणा रववाले गन्धार हाय, नित्य उज्ज्वल देवांग हाय, चंचल भ्रमर सहित मन्दारमाला ।
घत्ता - सम्यक्त्व से विमुक्त और जिनपद से चूके हुए व्यक्ति का हृदय शुद्ध नहीं होता, स्वर्ग छोड़ते हुए या प्रलय को प्राप्त हुए किस व्यक्ति का शरीर नहीं जलता ? ॥ ९ ॥
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सुन्दर मैले-कुचैले वस्त्रों और अत्यन्त झुकी हुई मालावाले मेरे मृत्युचिह्न ही शरीर से विरक्त होने का कारण बन गये हैं, जिनेन्द्र के जन्माभिषेक में सुमेर पर्वत को धोनेवाले और धूप धूम्र से गिरि-गुफाओं को सुवासित करनेवाले हे इन्द्रदेव, तुमने भी मेरी रक्षा नहीं की। हाय, मुझे मनुष्य होना होगा तथा कृमियों और मल से भरे गर्भ में रहना होगा। गर्भ से निकलने पर दुःख देखना होगा? नारी के स्तन से निकलनेवाला दूध पीना होगा? हाय-हाय देवलोक, मैं तुम्हें कहाँ देखूँगा? नष्ट होनेवाले शरीर में मैं वास नहीं चाहता। वह मनुष्यत्व मरघट में जाये, अच्छा है मैं वन में चन्दन या वन्दन वृक्ष होऊँ आठ प्रकार के रौद्रभावों से प्रेरित तथा सम्यक दृष्टि से विरहित मिथ्यादृष्टि, हाय-हाय करता हुआ दोनों हाथ उठाये हुए.
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