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दौड़ता है, जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है।
ठगना जानता है। गाय जिस प्रकार चौपाया है और घास चरनेवाली है, उसी प्रकार सुअरनी, हरिनी और रोहिणी ___घत्ता-पशु मारकर खाया जाता है, सुरा का पान किया जाता है और यदि इस कर्म से भी स्वर्ग-मोक्ष (मछली) भी। हा-हा, ब्राह्मणों के द्वारा वे मरवायी जाती हैं और राजा के लिए राजवृत्ति दरसायी जाती हैं, पाया जाता है, तो फिर धर्म से क्या? शिकारी की ही सेवा करनी चाहिए॥७॥
पितरपक्ष में स्पष्ट देखा जाता है कि द्विज विद्वान् मांसखण्ड खाते हैं, अंगार (कोयला) दूध से धोने पर भी कभी भी सफेद नहीं हो सकता। यह देह जो हिंसा के आरम्भ और दम्भ से लिस होती है, क्या पानी से धोयी
जा सकती है? अन्य-अन्य रंगों में यह रंगी जाती है परन्तु परमागम के रस में यह नहीं भीगती। मूर्ख जिनेन्द्र आग में होमे गये बकर (अज) स्वर्ग और मोक्ष गये हैं और देव हुए हैं, यदि ब्राह्मणों का सिद्धान्त यह की सेवा कैसे पा सकता है, उसे तो उसका सुनना, ग्रहण करना, धारण करना भी अच्छा नहीं लगता। है तो वेदों में कथित मन्त्रों के द्वारा वह प्राणायाम आदि क्यों करता है? अपने को क्यों नहीं होम देता? श्रोत्रिय पत्ता-मायारत (मायावी) को मानता है, मुनि की अवहेलना करता है, जीव-हिंसा स्वीकार करता है, स्वर्ग और मोक्ष क्यों नहीं चाहता, खोटे शरीर से बँधा हुआ क्यों रहता है? अपना पुत्र मरने पर धाड़ मारकर मनुष्य होकर भी पाप कर फिर संसार में डूबता है॥८॥ रोता है, बंचक वह अज और उसके बच्चे का वध करता है, बेचारी गाय ताड़ित की जाती है, रोकी जाती है, बाँधी जाती हैं, बछड़े को रोककर अन्य के द्वारा दुही जाती है, मल खाती है । बुद्धिहीन और बेचारी पाप जो यौवन तथा काम-क्रोध से सन्तस भावना को थोड़ा नियन्त्रित कर वन में तप करता है वह उस के फल से गाय हुई है, परन्तु देवी कहकर लोगों से उसकी व्याख्या करता है: धूर्तजन सीधे-सादे लोगों को भवनवासी स्वर्ग में जन्म लेता है।
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