________________
प्रादिनाथतर रपटावणं ॥
गणरचिता श्रविमसहरिसरिसदढ परिससु कयावा यूरकणं अविरलमिलियविठ्ठलफलसि द्विविजाण सुमंत लकण सुयणु-हरण्डहनिगाहपुवि । पापळत हाथ से गृहपाव जणवम दोस समजा दंड | इसापच किसिसुपाल सङ्गवाणिजे वरणाइम दिवश्चवमा समुधमुततिय अजविसुंदर ह। तिनसुति करेवा दीदी पणदाणेा लेखा ताकम्बुजगसंतिपयास आणि मय महगणसंतोस यतिवरिसजवतेहिंडणे वठा ज | पाहोजी व्दल वजणु रुणेच अंजिपढे वड तंजिकरेव ।
सिणधरेवालय व दंसणा चरिक देवउ ति उपाउं सुनु सरी रिधरेव वंल चेरुअवा कुल उत्री अमा रिमतादनन्त्री विषाणुतिपापाडेमा धूमण निधुदोमु तिलोम इममज्ञायविलंपडाते खाहितिजीउमा रिवितड॥ धन्ना सुय संगड करुणा वडा दाधरणिजणधारण इमरहठ। मसिह खन्निय
और भी, हे दृढ़पौरुष पुरुष, जिसमें अपाय का रक्षण किया गया है तथा अविरल रूप से विपुल फल की प्राप्ति हो, तुम ऐसे मन्त्र लक्षण को जानो। सुजन का उद्धार, दुष्टों का निग्रह, न्याय से करके रूप में छठे भाग को ग्रहण करना, जनपद के दोषों का शमन करना, इनका जो विचार करती हैं, हे पुत्र वह दण्डनीति कही जाती है। वाणिज्य के साथ कृषि और पशुपालन को राजाओं के द्वारा पूज्य ने वार्ता कहा है। चतुर्वर्ण आश्रम और धर्म त्रयीविद्या है। श्रोत्रिय (ब्राह्मण) आज भी सुन्दर नहीं होते। उन्हें तुम अपने से आगे रखना, दीन-हीनों को दान से सन्तुष्ट करना। उनका काम जग में शान्ति का प्रकाशन करना और भूतग्रहों को शान्ति करना है। अज तीन वर्ष के जौ को कहते हैं उनसे यज्ञ करना चाहिए, लोगों में जीवदया का प्रचार करना
Jain Education International
चाहिए। जो पढ़ा जाये उसी को किया जाना चाहिए। उन्हें दर्शन, ज्ञान और चारित्र कहना चाहिए। तीन डोरों का जनेऊ शरीर पर धारण करना चाहिए। ब्रह्मचर्य से रहना चाहिए, अथवा किसी कुल-पुत्री से विवाह करना चाहिए, उनके लिए मैंने दूसरी स्त्री नहीं बतायी। नित्य स्नान, जिनप्रतिमा का पूजन, नित्य होम करना, नित्यप्रति अतिथि को भोजन देना। लेकिन वे लम्पट और जड़ इस मर्यादा का उल्लंघन कर जीव मारकर खायेंगे।
घत्ता - श्रुतसंग्रह, करुणपथ, दान और धरती के लोगों का पालन करना, इस प्रकार मैंने क्षत्रिय कर्म की विचारणा की ।। ९ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org