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सुरपरिमरिमरणास्यणिहलणेश्यखि पणवप्पिएपद्धलगिगान पकणमहोयवसूहमणि याणाडदपारलयटमणिरावासयविधरंगजण्विाश्यातिपुरकत्सदउसपासहरसा खहकर बउमगुडलवणुळकरण तियतिबदतिलसनमणदरणु तिमांश्यतिचालतिजो यधरू तिकरिखउपचपाणियहरू लिपसारखेवरूतिमङ्गण बासालिकारसलकण्ठं अहारह जाइ हिमडियउययहिंगुणहिंगुडिया वाड्यानुवाचडू हणियुधुविमणहा रिडु श्मताडहिंताईअलकरिल वादहितन्त्रदिपरियरित वामहालिंगियसम्निमाउण हुगुबाईचाणियाला जहिलावनिड्डाणजलहियम सुसंवागसुललियाहि ववलह दिबहादमुचियदि चनाघनंगलियाहिं मलयाविनाविश्ययुसिराबझिदासुसिर णिकसय संसोजाउँबसेता सहजयमुपनियुटयुश् थिममुकंगलिदसुश्वसुरकंपतियापनगरतिस इमर्वयलियाइयगडमुशवलिमारकचसणक्न सङसामझिमपंचमयासरिसबंधेय कंपतिमा सामलसरंतरतियणगंधारणिसायाववलियाश्रहामुकायलियाए पदाणिय विपणापामरहिवरुपास्यसमिलरहिं पडियमजेदेवासमेतपिठानिकलुतपुर्विततारणितीया
गान प्रारम्भ करनेवाले देवों से घिरी हुई वह नाभेय (ऋषभनाथ) के घर अवतरित हुई। प्रणाम कर उसने पत्ता-जहाँ द्विश्रुतिक त्रिश्रुतिक, और चतुःश्रुतिक श्रुति संख्याओं से सुललित चलबद्ध अर्धमुक्त और प्रभु की सेवा की और नाट्याभिनय का अवसर माँगा। सबसे पहले उसके नाट्य के प्रारम्भ में अभिनीत व्यक्त और अव्यक्त अँगुलियों के द्वारा करनेवाले आदरणीय देवों ने गीत प्रारम्भ किया॥५॥ होनेवाले बीसों अंगों से परिपूर्ण पूर्व रंग का अभिनय किया। तीन प्रकार के सुन्दर पुष्कर वाद्य, तीन प्रकार के भाँड वाद्य (उत्तम, मध्यम और जघन्य), सुप्रसिद्ध सोलह अक्षरोंवाला, चार मार्ग, दुलेपन, छह करण, विरति के नाशक, मनुष्यों के द्वारा प्रशंसित बाँस के सुषिर वाद्य से स्वर उत्पन्न हुआ। जिसके ध्वनित तीन यतियों सहित, तीन लयोंवाला, सुन्दर तीन गतिवाला, तीन चारवाला, तीन योग को करनेवाला, तीन प्रकार होने पर शाश्वत श्रुतियाँ (बाईस श्रुतियाँ षड्ज और मध्यम ग्रामों में से प्रत्येक की बाईस) मुक्त अँगुली से के करों से युक्त, पाँच पाणिप्रहार, त्रिप्रकार और त्रिप्रसार, और त्रिमज्जन (त्रिमार्जनक) इस प्रकार बीस आठ श्रुतियाँ, काँपती अँगुली से तीन श्रुतियाँ उत्पन्न हुईं और मुक्त अँगुली से दो श्रुतियाँ । व्यक्त अँगुली के अलंकारों के लक्षणों से युक्त, अट्ठारह जातियों से मण्डित और इन गुणों से आलंगित नृत्य का प्रदर्शन किया। छोड़ने के कारण षड्ज के साथ मध्यम और पंचम स्वर तथा सामान्य स्वरों की संज्ञा के समान काँपती हुई और भी चच्चपुट, चाचपुट और सुन्दर छप्पयपुट: इन तीन तालों से अलंकृत और उनके अनेक भेदों से सहित, अँगुली से धैवत, गान्धार और विषाद स्वरों से संचालित, अर्धमुक्त ध्वनियाँ अँगुलियों के द्वारा नाना आदरवाले, वाम, ऊर्ध्व और आलिंगत संज्ञाओंवाला अनवद्य वाद्य का मैंने वर्णन किया।
तुम्बरु और नारद के समान देवों ने ठीक की गयी वीणा को उस प्रकार प्रकट किया जिस प्रकार आगम में
बताया गया है। दो प्रकार के वीणावाद्यों (विष्कल और त्रिपंच) Jain Education International
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