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प्रमालाअजविणउफिशनायाचविणचिंचपामंग अडविपक्षहिमपाठवसमई माणदरमणारमणउरमउंसरमिहिसमाहमश्पयडियउहाकोडाकोडियन पहाधम्मक मतरादसणणाणश्यरियश्वरवायापचमहावया
रंदिअपूछरा नाम अणुवागणव्यासरकाघाईनण्यासघ्यावपयळसदिठसित
जसाध्वर्गतहियो
ध्यानगरादिना हणाश्यरुहकदिन मवितिविश्ट्रजाणियअवलिया
थागूश्नवाक लवियबधमाणियानादहोजचरियावरणधुमनिम्मगाव
ऊपठ॥ रश्तक्षयरणुपुमाउसणालजसणउगमजावियज्ञयाग) पडताहाविरायदोकारिणयडविसंजमुहारण जिणधम्मपवतणाजणा श्यसलरविणुपुणविमणाया नानालंजसरइवसमयणरणा इदेलणियअणिदहा सुद्धरना गळदिकदिकमजबलु पहिराउजिणिदहाधिामला त अंगणासयमहरमणीयपमयपरसाकेनपुरीळा आयाण हेपाटयरिख विजुलियणाश्चलविफरियाघाडहिगायण ए
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आज भी भोगरति नष्ट नहीं होती, आज भी वह परम गति की चिन्ता नहीं करते। आज भी स्वामी का हृदय निर्जीव होकर गिर पड़ती है तो यह उनके वैराग्य का कारण होगा, और इससे दो प्रकार संयम का उद्धार शान्त नहीं होता, वह मानव रमणियों से रमण करने में रमता है। अट्ठारह कोड़ा-कोड़ी सागर समय बीत होगा। लोगों में जिनधर्म का प्रवर्तन होगा-इसप्रकार अपने मन में बार-बार विचार कर गया है। धर्म और कर्म का अन्तर नष्ट हो गया है; दर्शन, ज्ञान और श्रेष्ठ चारित्र्य भी नष्ट हो गये हैं; आचार, पत्ता-रति की अधीन मृगनयनी नीलंजसा को इन्द्र ने कहा-"तुम जाओ और अनिन्द्य जिनेन्द्र के पाँच महाव्रत, अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाबत भी नष्ट हो चुके हैं । अर्हन्त भगवान् के द्वारा कहा गया नौ पदार्थों चरणकमलों के दर्शन कर उनके सामने नृत्य करो"॥४॥ से युक्त अनादि सिद्धान्त आज प्रकाश नहीं पा रहा है-यह सोचकर इन्द्र ने यह जान लिया और अवधिज्ञान से प्रमाणित कर लिया कि स्वामी को आज भी चारित्रावरणी कर्म का उदय है, उसके शान्त होने पर ये तब ऊँचे स्तनोंवाली इन्द्र की रमणी (नीलांजना) रत्ननिर्मित घरोंवाली अयोध्या नगरी पहुँची । कृशोदरी निश्चितरूप से तप ग्रहण करेंगे। यदि पूर्ण आयुवाली नीलंजसा (नीलांजना) नाट्य करती है और उनके सामने बह आकाश-मार्ग से इस प्रकार आयी जैसे चंचल चमकती हुई बिजली हो।
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