________________
पाखणखिजशकालालिमयरडवपिजशविमलजावणुणकरयलजल्ला णिवरश्माणुसुण पिक्चर फलासियहिलवण्जसञ्चाखिसापारवितणेग्लारिजजामडिवमक्ष्विज्ञ हिनविज्ञासामुग्घरदारपणाणिजज्ञाघता किजिनपखलावनउमडियल पक्षश ताविमजियजाणविअडुळ अवलवियलमाणिजवणनिवासमाशाशारवडली व शियदाहरणं किंजोअश्यपहरण ममश्रियाणघणा सरणविरहियजयामिणालाजा विधरंतिवारनरकिनर अरुणवरुणसपवणवसागरगरुडझकरसकिजाहरायपिसान गारससिदिणयर पडिवलकुलकरपाणकालाणलादपर्डिवहमिदमहाबल पासवान वजियावर कलयरवक्तवहिरिहलहर अविधरतिदेवसालासुर पवराउदयवीणदेवासरजा इसमयहरतरकिकरहरिकरिरहवृहतर सरसरिगिरिदरिककरवंदो टुप्पवेमकलिमायस पंजरेवालयमधयारिमहिमूलए जयश्सगपिपायालय साविजाठकहिाकाले हरिणाह रिणवमिठडिकालेधना श्यवशेविअमर सिवितियराणु जणचरिशमविणउतमाणसवमा वायविसमा समश्कलेवरुन शारडम मित्रसमणसंमोटाठी होउहाविम्य एकाधियजगे
और रंग एक पल में क्षीण हो जाते हैं, कालरूपी भ्रमर उन्हें मकरन्द की तरह पी जाता है। यौवन इस प्रकार प्रतीन्द्र और अहमिन्द्र, पन्द्रह क्षेत्रों में उत्पन्न जिनवर, कुलकर, चक्रवर्ती, हलधर और नारायण इसे धारण विगलित हो जाता है मानो अंजुली का जल हो। मनुष्य इस प्रकार गिर जाता है मानो पका हुआ फल हो। करते हैं। शरीर की कान्ति से भास्वर तथा प्रवर आयुधों में प्रवीण देवासुर भी इस जीव को धारण करते हैं। स्त्रियों के द्वारा जिसका नमक उतारा जाता है वही फिर तिनकों पर उतार दिया जाता है। जिस राजा को दूसरे यदि यह जीव समुद्र के भीतर, अनुचर (सैनिक), घोड़ों, हाथी और रथों के व्यूह में सरोवर-नदी, पहाड़राजा नमस्कार करते हैं, वही मरने पर घर की स्त्री के द्वारा नहीं पहचाना जाता है।
घाटी-कर्कश गुफा में, दुष्प्रवेश्य वज़ और लोहे के पंजर में प्रवेश करता है या चाहे अत्यधिक तमवाली धरती घत्ता-चाहे शत्रुबल जीता जाये या महीतल भोगा जाये, बाद में तब भी मरना होगा। इस प्रकार अध्रुवत्व के मूल या पाताल में जाकर छिप जाता है तब भी वह काल के द्वारा उसी प्रकार निकाल लिया जाता है जिस (अनित्यता) को जानकर, और तप ग्रहणकर एकान्त वन में निवास करना चाहिए॥१॥
प्रकार भृकुटियों से कराल सिंह के द्वारा हरिण।
घत्ता-यह अशरणभावना समझकर, मन-वचन और काय को रोककर जिसने चारित्र्य स्वीकार नहीं शत्रुराज के दर्ष को चूर-चूर करनेवाले हाथ और हथियार को क्या देखता है। अपने को समर्थ समझता किया वह मनुष्य रूप में वायु से प्रेरित होकर व्यर्थ भ्रमण करता है ॥२॥ है, यह जन शरणहीन है। यद्यपि इसे वीर नर, किन्नर, अरुण, वरुण, पवनसहित अग्नि, गरुड़, यक्ष, राक्षस, विद्याधर, भूत-पिशाच, नाग, चन्द्र, दिनकर, शत्रुओं के कुलरूपी कानन के लिए कालानल के समान इन्द्र, मित्र और स्वजन का संयोग होकर वियोग होता है, जग में यह जीव अकेला ही
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org