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मकरकमणमनयापनविगलुरमणुसंचियमय नसलासपठहारलपाणडजाणों संदरिकहिमिगया सुप,गणहरिणीलवणु णविजविवाठमदनल अमराहिवणारिण्य प्रमुयनातपेविकोहलयउहाहासम्बसायलय अछाणुसेसविविसलायला
श्रादिमाघमाज सापचराकउमर गुदषिवराग्यसप
सहमरणकरणकपियासरहजणणसवियकामरिकनक्कलतिजगगुरुकुसमयंतरेश्म कटाएगाळायमहापुराणातसाहमहापरिसराणालकारामहाकश्खप्परतावरश्यमहा।
घत्ता-उस मृत्यु और करुणा से काँपते हुए भरत के पिता विस्मय से भर उठे। कुसुम के समान दाँतोंवाले और रति से मुक्त त्रिजगगुरु चुप हो गये ॥९॥
न तो स्तन, न नृत्यगुण, न मुख और न संचित काम विपुल रमण, न केशभार, और न हारलता। मैं नहीं जानता सुन्दरी कहाँ गयी। नीलमणियों से विजड़ित आँगन सूना है, मानो बिजली से रहित मेघपटल हो। इन्द्र की रमणी मर गयी। यह देखकर उन्हें कुतूहल हुआ। हा-हा कहते हुए वह शोकग्रस्त हो गये। समूचा दरबार विस्मय में पड़ गया।
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का निलंजसा-विनाश नामक छठा परिच्छेद
समाप्त हुआ॥६॥
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