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यवनहरतरहविङसासुपणचियामासदिहिपरियाँधिननागवताळूपरिपालिखल ऋहर विस्मनदसणगश्ठीतक्षियविडनुपरविलाविलगदप्यमारुमडुदावियमा सन्नजयपराह समहालविणासाकवोलशहर सत्रविडचिठभचठमुहहोगया गवगलचरसहिॉवकरणक्षा झासालदविङ्गतिविडचउशिकवि किटकरणमग्युमहदहनिधि मरुसरविवपासड़यतिविड़ पाहविपायडियनततिधिक कडिदखजंघाकमकमलातिविहजिपिदियविमुलाश साठकरणहर वसंवाहिया चलवतासंगहारमियठा चमुख्यमणडगुरुकिविधय सवारपिडावश्कदाचालि सालसद्धसाखानपाध्यूजियरकच्चिारख्यावासविमंडलश्पयासियापतिामा संदरिसियशोधूती सिंचरियाधिरियर्दियालाईसाहिगाडज्यूणेयडिं खासाहिंलादि। निवरसहिदावियाणाणासयहि मामलावस्याध्यालिरहरिसं अहिनवमरस अशिधर तीदिहमरतालाजिपामाहेसाणालेजसिम णकपविचितिलिदिदसिया कंदप्पर्कतिण पाठसियालायणतरंगिणिपसुसिया णखषविहामियान्यरिणददाजपयनणणिवाये। सिरि गरंगसगवरपटामणिय कम्मणकालभूवखणिया चिंदरपहअहमिया एणसुरछा सिरिमाणासमिया रसवाहिणिक्षिनरचन्नसुहागणासिटापिसासुकश्कदा पाठयपण
उसने तेरह प्रकार से सिर को नचाया। छत्तीस प्रकार से दृष्टि का संचालन किया, राग को पोषित करनेवाले नौ पत्ता-धृति आदि संचारी भावों, स्थायी भावों, अनेक भाषाओं और जातियों, नाना भेदों के प्रदर्शक तारकों और आठों दर्शनगतियों की रचना की। फिर उसने तैंतीस भावों का प्रदर्शन किया। और फिर नौ नन्दों नवरसों से नीलांजना नृत्य करती है ॥८॥ का प्रदर्शन किया । हृदय का हरण करनेवाला सात प्रकार का भूसंचालन, छह प्रकार का नाक-कपोल और अधरों का संचालन, सात प्रकार का चिबक और चार प्रकार का मखराग, नौ प्रकार का कण्ठ और चौंसठ प्रकार के हस्त के भेदों का प्रदर्शन किया। सोलह, तीन और चार प्रकार के करण मार्ग और दस प्रकार के भुज-मार्ग बताये। उर के पाँच प्रकारों, पार्श्वयुगल के तीन प्रकारों और उदर के तीन प्रकारों को प्रकट किया। कटितल, जाँघों और शीघ्र ही हर्ष को विगलित करनेवाले नवम रस (शान्त रस) को वह धारण करती है, और ऋषभजिन चरण-कमलों का प्रदर्शन भी उनके अपने भेदों के साथ किया। इस प्रकार चंचल बत्तीस अंगहारों के साथ एक उसे मरती हुई देखते हैं। जिननाथ ने उस नीलांजना को देखा, उन्हें लगा मानो सौन्दर्य की नदी सूख गयी सौ आठ कारणों का प्रदर्शन उसने किया। चार प्रकार का रेचक, सत्तरह प्रकार के पिण्डी बन्धों का, कि जो नटराज हो, मानो क्षण-भर में रति की नगरी नष्ट हो गयी हो, मानो जन-नेत्रों में निवास करनेवाली श्री आहत हो के कीर्तिध्वज हैं, प्रदर्शन किया। इन्द्रियों को जीतनेवाले गणधरों के द्वारा बतायी गयी बत्तीस प्रकार की चारियों गयी हो, मानो नाट्यरूपी सरोवर की कमलिनी को कालरूपी सर्प ने काट लिया, मानो चन्द्रलेखा आकाश का नृत्य किया। उसने बोस प्रकार के मण्डल और तीन संस्थानों का सुन्दर प्रदर्शन किया।
में अस्त हो गयी: मानो इन्द्रधनुष की शोभा को हवा ने शान्त कर दिया हो।
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