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कादिकांडाक्तियों किनसवयहा अहिमाणिवणुचंगठाउदारियपरियडएणमाहिएतहाअंगठाशमलया,
विलासियया सुरवरसारठ एमण्डार अच्छश्श्य सरवनश्यानासचितश्यवहाणाणाद इंदविताना
नरुवारहरविसमिककिसयर पुपरमसरणारमिया क गैपरमेखखेराग्य कारणी।
मावासलकगमिया सुजचूहोमहिनेसहिगया अजविर अवलोयश्चवलहदा झविमणमगमलायाश्च्छा अविसदपासघ्य श्रद्धाविध्यार्किकरनिवहे अजाविण विरण्यश्काममुद कोकरायडचणणधवशसरिसलिल सरणियराहिवरकोलाएंजावहोकर शहिदि सहवलद। तकम्पविदि जायसनमुशाश्वजहिं अमानवाकिस यमितबिना रविलाविठण्मजयकिपिणजाणाझं डबासकलाहिं नहिंमोदिठानिवडश्हाईवठा मलयविलासिया डडेविहारशरतिहा मलहधणणातिति
घत्ता-मैंने ये सेवक के लक्षण कहे । परन्तु जो स्वाभिमानी है उसके लिए वन ही अच्छा। द्वारपाल के द्वारा प्रेरित दण्ड उसका (स्वाभिमानी का) अंग न छुए॥२॥
भी ध्वजसहित रथों को चाहते हैं, आज भी उनकी घर और अनुचर-समूह में रति है । आज भी वह कामसुख से विरक्त नहीं होते। आग को ईंधन से कौन शान्त बना सकता है, नदियों के जलों से समुद्र को कौन शान्त कर सकता है, भोग के द्वारा कौन जीव में धैर्य उत्पन्न कर सकता है? कर्म का विधान सबसे बलवान् होता है। जब देव जानते हुए भी मोहग्रस्त होते हैं तब किसी अज्ञानी को मैं क्या कहूँ?
घत्ता-रति से रंजित यह जग उन लोगों के लिए अच्छा लगता है कि जो और दूसरी युक्ति नहीं जानते। अपनी स्त्रियों और पुत्रों से मोहित यह जग नीचे से नीचे गिरता है॥३॥
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सुरवर श्रेष्ठ आदरणीय ऋषभ जब इस प्रकार विराजमान थे, तबतक अवधिज्ञान को धारण करनेवाला तथा बारह सूर्यों के समान वज्र को धारण करनेवाला इन्द्र सोचता है कि परमेश्वर के द्वारा रमण किये गये बीस लाख पूर्व वर्ष कुमारकाल में बीत गये। और धरती का भोग करते हुए प्रेसठ लाख पूर्व वर्ष चले गये। लेकिन वह आज भी चंचल घोड़ों को देखते हैं। आज भी अपने मन में मतवाले हाथियों को मानते हैं, आज
दुष्ट और धृष्ट तृष्णा में तुम जलते हो, आज भी इस धन से तुम्हारी तृप्ति नहीं हो सकती।
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