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याद फणिवर सिरमणिय पयणेन सकला उस मुनु संप्ते उरु कहियारेसरकुले हिंदि ।
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राइकर तुम्हाइट मग्गुलाला सुरु सिरिरुहें सा राश्यमहा पुराणे तिसहिमहा॥ | संतविरश्यामहाला धधोनाम पंचमोपरिळे डंस वाग्देवा कम्प्पतिवाग्देवा द्वेष्टिसं योरातिकं गाउ फणिदणुयर्दिमणुयदि कैमलय विलसिया॥ कंचणध
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ममिएमदा को आश्देवमहाराय महो॥थळासंधिया ततंलच्ये सरतमनुगम्यसांप्रतमन दिदिणेसलवणे सुरवरदि संथुनसंप सेवियर थिउछात्रा पिसडारन का डियय मणिगणअडियय, दखिरधरि खाली पठ परमण्ड श्रमूदिकिंचलि
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नेत्रों को आनन्द देनेवाले, नागराज के शिरोमणि से आहत है पद-नूपुर जिनके ऐसे आदरणीय वे कलत्र, पुत्र और अन्तःपुर के साथ तथा पूर्वकथित नरेश्वर कुलों से शोभित राज्य करने लगे ।
घत्ता- आभा से भास्वर ऋषभेश्वर लक्ष्मी से योग्य भरत के साथ प्रजा का पालन करते हैं उसे न्याय का मार्ग दिखाते हैं ॥ २२ ॥
इस प्रकार त्रेसठ पुरुषों के गुणों और अलंकारवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का आदिदेव महाराज- पट्टबन्ध नाम का पाँचवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ५ ॥
सन्धि ६
दूसरे दिन अपने भवन में सुरवरों से संस्तुत, सम्पत्ति का विधाता, नागों और दानवों तथा मनुष्यों के द्वारा सेवित आदरणीय ऋषभ दरबार में स्थित थे।
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स्वर्णनिर्मित मणिसमूह से विजड़ित, प्रभा से भास्वर सिंहासन के आसन पर आसीन परमप्रभु ऋषभ का हमारे द्वारा क्या वर्णन किया जाये? गादी के आसन, विचित्र चमकते हुए वेत्रासन, रत्नों से जड़ित लोहासन और दण्डों से उन्नत दण्डासन दे दिये गये।
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