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लवयंचालवि| मागहरु सोहने वाली उड़मुंड हरि कुरुमंगालवि देवमा उसी सुझ सलिल साहा रण अवरजंगल गिरितरु सरिङग्गेहिंडयंचर अडइदेसवास का घरस सवर। छत्रा। ववरि यदि वणहरिया महिसा दश्यथा सिद्धिं कय्गामहि आरामदि। खेता हैण्क्कडको सहि २० धरचिता ॥ चनविहगोउराना र नयर इंटमिन्सूरणो का रथ पुराईपुरवाजिणोयरदिलपस खेड डिवासगिरिसरियई। कह डाई महिरप स्थिरिय पंचगामस्यसाक्ष्यमवर यणजे णिपट्टण दोणामुदई जलहिती राई संवाद अद्दिसि हर सुणिश्ववियसवि शाम से वाय रावश्रा यरह से आसरायमणिय राय सुरिदागर्दे तेरका वियक लयस्वदें। वपच कम दो असे स्पष्पासिठ तिङयणराय हो मदिराय ऋणु कवणुगदपुत होमपुट पsay कम्मरसिंपल दरिस त हो। कृष्णसरणारहि वरिसं तह।। युद्धं वा सलख गजज़ इस वडुप जगणा होत इम् पाहिरिदामरसे घान ह। कठ्मदा कळादिवरा यहि ।। धत्र सिंहासो थि वसासणे। श्रासी परमेसरु। जयसिरिसर्दि पाउदिमदिं वड दलहर उवणिय कर ।। २शरचिता दय मलचरण कमलजखनिवडियविसहरखदरदयरो। अकलुसतिय सतरुणि करपञ्चवचालिखचारुचामरा
मालव, पंचाल, मागध, जाट, भोट, नेपाल औण्ड्र, पुण्ड्र, हरि, कुरु, मंगाल, देवमातृक धान्य उत्पन्न करनेवाले, जलसहित धान्य उत्पन्न करनेवाले, साधारण (दोनों प्रकार के) अनूप और जंगली देश पहाड़. वृक्षों और दुर्गा से दुर्गम, धरा को अधीन करनेवाले शवरों सहित अटवी देश।
धत्ता - वृत्तियों और वनों को धारण करनेवाले चारों ओर के पार्श्वभागों से रचित ग्रामों, उद्यानों, एकदो कोसवाले क्षेत्रों से धरती शोभित है ॥ २० ॥
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भूमि के भूषण तथा इन्द्र को दी है आज्ञा जिन्होंने ऐसे पुरदेव जिनने चार प्रकार के गोपुर और द्वारवाले नगर और पुरों की रचना करवायी। नदियों और पर्वतों से दो ओर से घिरे हुए खेड़े, पहाड़ों से घिरे हुए कव्वड़ ग्राम गाँवों सहित मण्डप, रत्नों की खदानवाले अपूर्व पट्टन, समुद्रों के तीर्थों पर स्थित द्रोणमुख, पर्वतों के शिखरों पर स्थित संवाहन तथा अच्छी तरह निरूपित और सविनय सेवा में तत्पर वैराट प्रभृति जो खदाने
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हैं उनकी, राजाओं और इन्द्रों को आनन्द देनेवाले कुलकर चन्द्र ऋषभ ने रक्षा करवायी। वर्णों के चार मार्ग का उपदेश किया। दण्डविधान से अशेष दोष को नष्ट कर दिया। उन त्रिभुवन राजा को धरती का राजत्व प्राप्त था, मनुष्यों की प्रभुता प्राप्त करने में कौन-सी बात थी। इस प्रकार कर्मभूमि की सम्पदा को दिखाते हुए, स्वर्ण और धन की धाराओं को बरसाते हुए जब बीस लाख पूर्व वर्ष बीत गये तब जगनाथ को नाभिराजा, अमरसमूह व कच्छ महाकच्छ राजाओं के द्वारा राजपट्ट बाँधा गया।
घत्ता - सिंहासन और नृप शासन में आसीन परमेश्वर, जिन्हें बहुत-से हलधर कर देते हैं, जो जय और लक्ष्मी की सखी धरती का पालन करते हैं ।। २१ ।।
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जिनके निर्मल चरणों में विषधर, विद्याधर और मनुष्य प्रणत होते हैं, और जिन पर पवित्र देवस्त्रियाँ अपने करपल्लवों से चमर ढोरती हैं, ऐसे वह ऋषभ धरती का पालन करते हैं।
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