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हिंमिणिम्मलकंचावन्नई शकरगणियकदियश्करणदाळेसहणविसाहित्रमागह अगडावडकबुखासकरपायउनुणुचवसमा विश्वमानणायम्सएससनासलकलासिर जसग्गिनिवहत पाउरकाश्यकहरहह अणिवहनगावठाखलागेयवाक्ल क प्रविनिरिक वसवरकाणिजिहा कुमराहयलवुझिउततिहासुमहमदनकहा बधणशविलागणाणश्चकलेवशंपमराडारपसापडलम्गीपाइचालतमा काधना अविवश्यावरुवाश्याचवजिणेपानिरिखियापजदहावहासुरमहिम्हं अवस पिपिएसस्क्यिाचारचित सयमहवियडमडतडमणिगणवियलियविमलवारिणाधुयर श्रादिमाशश्राम
प्रजात्राममनादि भिप्तकरण धव वरुपिणी
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अक्षरों की गणना उन्होंने निर्मल स्वर्ण वर्ण की कन्याओं को बता दी। अर्थ से और शब्द से भी शोभित गद्य
और अगद्य, दो प्रकार का काव्य, संस्कृत, प्राकृत और फिर अपभ्रंश, प्रशंसनीय उत्पाद्य वृत्त, शास्त्र और कलाओं से आश्रित सर्गबद्ध काव्य (प्रबन्ध काव्य), नाटक और कथा से समृद्ध आख्यायिका, अनिबद्ध गाथादि, मुक्तक काव्य कहा। गेय और वाद्यों के भी लक्षणों को देखा। आदिनाथ ने स्वयं जिस रूप में व्याख्या की, दोनों कुमारियों ने उसे उस रूप में ग्रहण कर लिया। अनेक शास्त्रों, बहुभेदवाले ज्ञान-विज्ञानों की व्याख्या
करते हुए महान् और आदरणीय आदिनाथ जब इस प्रकार रह रहे थे कि तभी प्रजा दुष्काल से भग्न हो गयी।
घत्ता-नहीं जानते हुए वह (उनके) घर आकर कहती है कि 'हे प्रभु, अवसर्पिणी ने दस प्रकार के कल्पवृक्ष खा लिये हैं। जिनेन्द्र ने इसे देखा ॥१८॥
१९ इन्द्र के विकट मुकुटतट के मणिगणों से झरते हुए पवित्र जल से धोये गये हैं
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