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दविणसलिलेणिहिन्न। भूवंकलथणथर अहरहो करन पहिलऋणु अपारण पण इंविचलत्र हो या सिगं सीरिमाणा हिडेश्र्वरुमियं वहो वडिम कंची दामण गणाद ढबंधहे। रमिंग। परलोयविरु हो सकुडित्र पुरिसेो वरिमाणस कढिपत्त्रपु दिइदाश्वव
श्रसमेहलुमशुमशकुवन्डलु गप दहरवि लुलियघणघण चलदारावलिमोचियजणकण सिंचियते दिणामश्सास रामराश्ववेलिवृद्धीस श्यर्वे जगम शारिदिसुंदरि जाणविताएको क्किमसुंदरि ॥ बत्रा ॥ कुन्त्रा रुरु सतायुदंडयधीयन कज़सेहिहि परमहि हे जायउ णुवमभूव ॥ 291 रचिता।। जय वश्णणश्चर मूलमिमहा विर्विदमद्दणा व सुवणिवरधरणपरिण यम जाया सलाद लावणमसिहं पलपि दा हिणवाम करेईिलिहपिए दो
जीत लिया है, इसी कारण उसने अपने को पानी में छिपा लिया। भौंहों का टेढ़ापन, स्तनों की कठिनता, अधरों की अति लालिमा, एक बार गिरने के बाद आये हुए दाँतों की धवलिमा और नेत्रों की चंचलता लोगों को मारनेवाली है। उसके तुच्छ उदर के बीच में रहनेवाली नाभि की गम्भीरता, तथा सोने की जंजीर (करधनी) से दृढ़ता के साथ बँधे हुए परलोकविरोधी (परलोक की साधना करनेवालों के लिए बाधक) और आच्छादित नितम्बों की बढ़ती; सिर पर उगे हुए केशों की कुटिलता, पुरुषों के ऊपर मानस की कठिनता, देख लिया है दोष जिसने ऐसा (व्यक्ति) अवश्य अमध्यस्थ (पक्षपात करनेवाला) होता है, उसका मध्य (भाग) इसीलिए अमध्यस्थ की तरह दुर्बल हो गया। उसके पयोधर (स्तन) सघन मेघों को लुण्ठित कर देनेवाले हैं, उसकी मोतियों की चंचल हारावली जलकणों के समान है। उनके (मोतीरूपी जलकणों) द्वारा सींची गयी रोमराजि
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आदिनाथ
चीपटाव
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नयी लता के समान दिखाई देती है, ऐसा मेरे द्वारा कहा जाता है। इस रूप से विश्व नारियों में सुन्दर मानकर पिता ने उसका नाम सुन्दरी रख दिया।
घत्ता - इस प्रकार युद्ध में दुर्धर अनुपम रूपवाले एक सौ एक पुत्र और दो कन्याएँ सृष्टि के विधाता परमेष्ठी ऋषभनाथ के उत्पन्न हुए ॥ १७ ॥
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महाशत्रुओं के समूह का मर्दन करनेवाले सभी पुत्र विश्वपति पिता के चरणों के मूल में, अनेक शास्त्रसमूह के धारण (अभ्यास) से परिणत बुद्धिवाले हो गये। भावपूर्वक सिद्धों को नमस्कार कर दायें और बायें हाथ से लिखकर
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