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वनहरचरलिहिं सोमसुदसणुपदमुक्कमारल पठतिएवाइनलिकुमारठ काएविककवो लिकमकामल तपतावेणकदश्सरकोमल कादिविविरहसिपिउठियलु धवलुधिकमर मुड़वानालाल सदश्कामुमडसमयागमण गिदमकाविपियसमयागमणे मुठलियफर जियमयिकाणणे मंडपदविरधिणकापणे पिग्गलपल्लवणवसाहारहो मुयस्तातावर हिणिसाहारहो। पश्मल्लिप्यिालवश्वकोशल सध्यत्तकिरसश्काइल मुहमस्परिमलय मालयासिलिम्बद्ध जेतपकदासिलिम्मुड काविचवपियहठेन्चहरवा ऋगश्यमड़ा इकरचा काविसणपिठाकरिकसपड, विमल मालकसमपरिगडाकाविकदलच दिवयण अवरुभकिपिडिपडिवरण धनगण्डमालश्कविश्वनशमकरहिकार्शवति। पिठ घरविधितियविचवि समलुवित्रसमणिहारवारनिताकविरुणरुणशकिपिस सहयरुमणरुदतिसिहसस्लिम पिययमवयणकमलरसलपडितरुणामजअसल्लियाळ। जोसहमहिलदिमाणिज कंदाजपुष्कहोउवामिज़शुगन्नपुर्णदहवरखणा तासद्धि णिअवरविउप्पमा जोणिचडतिसालझारचंडकलकवरणहोलाएनुष्यलुपयसो ४६
शीघ्र मुख चूम लो और किसी को तुम प्रतिवचन नहीं देना।"
घत्ता-कोई उसे नहीं छोड़ती और कहती है, "कोई भी बुरी बात मत करना। घर, धन और अपना चित्त भी सब कुछ तुम्हें समर्पित करती हूँ"॥१६॥
सौम्य सुदर्शन उस प्रथम कामदेव बाहुबलि को देखती हुई किसी के द्वारा गाल पर किया गया कोमल कर शरीर के सन्ताप से सरोवर जल निकालता है। विरह की ज्वाला से किसी का मांस दग्ध हो गया। और धवल कमल भी नीलकमल हो गया। वसन्त माह के आ जाने पर भी कोई स्त्री काम को सहन करती है, कोई प्रिय के आगमन पर भी (मान के कारण) आहत है। कानन (जंगल) में मुकुलित जूही खिल गयी है, कोई स्त्री मुख पर मण्डन नहीं करती। नव-सहकार वृक्ष के पल्लव निकल आये हैं, विरहिणी ने सहकार में अपनी शांति का त्याग कर दिया है। पति को छोड़कर कोयल की तरह आलाप करती है, सुन्दरता में (सुभगत्व) कौन धरती को विभूषित करता है? मुख पवन की सुगन्ध (परिमल) से मिले हुए जो भ्रमर हैं वे मानो कामदेव के बाण हैं। कोई कहती है- "हे प्रिय, मैं तुममें अनुरक्त हूँ, आज मेरी दु:ख में रात बीती है।" कोई कहती है, "हे प्रिय, तुम मेरे बालों को बाँध दो, बँधा हुआ मालती का फूल गिर गया है।" कोई कहती है, "लो
प्रियतम के मुखरूपी कमल के रस की लालची कोई तरुणीरूपी भ्रमरी कानों को सुख देनेवाला कुछ भी गुनगुनाती है, जो सुन्दर कामदेव महिलाओं के द्वारा माना जाता है उसकी उपमा किससे दी जाए? सुनन्दा के गर्भ से, रूप में रमणीय उसकी एक बहन और उत्पन्न हुई; नवयौवन में चढ़ती हुई वह अत्यन्त शोभित है; कलंक के कारण चन्द्रमा उससे लज्जित होता है। उसने चरणों की शोभा से रक्तकमल को
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