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काणाणादाणदालिद्दतिमु सम्माणियामुहियरियणाईचोलहिणेमुक्करकंकपार्शवित्रणविवा दिविहवणसाङ्क थिठरशंकरचणण्यासालाचता। जसवश्युदण्याणियदि पणरहित वश्वावियनामिरिनुपये
सोरिसङ्कगड ठरहखेत्राणिवसेवि मनाजिलहियाच्या
दारापतिसहिमहानुरिसगुणा लकारामहाकमुखादांतवि।
रहीमहासरहाममिएम हाकवाकुमारविवाहकाला।
पंणामचन्दपरिसमाब संक्षिा पण खूलीला
त्यजमुचसंगतंकवहादिबकि मामाचंदायचासमूधाला
तिकोनगिकामाइना मुग्धेश्यामद | निहाखडसक्वेवंधुगुणस्न
तखमय्पषपरांगनानसरतःशीचा खुम्विन्द्रितिािवकवि
यमलए गमकालय एकदिदिरोस हंकारिणि णिरुवमससिधुराणाहितणावमणहारिणितारचनाविणससिखणकिरणणि इदिहियरघरसयालतिया पविमलसरलकमलदलवलयसुकोमलललियगचियााळारमा ३५
सन्धि
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कानीनों और दोनों का दारिद्र्य दूर कर दिया गया। सुधी-परिजनों का सम्मान किया गया। चौथे दिन कंगन छोड़ दिया गया। वैभव के साथ अच्छी तरह विवाह हो जाने पर स्वामी न्याय के साथ राज्य करने लगे।
घत्ता-यशोवती और सुनन्दा रानियों के द्वारा प्रणय और हृदय से चाहे गये श्वेतपुष्प (जुही) के समान वह ऋषभ, भरतक्षेत्र के राजाओं के द्वारा सेवित हुए॥१९॥
प्रिय से मिलाप करानेवाले समय के बीतने पर एक दिन अनुपम सती शुभकारिणी, ऋषभनाथ की अत्यन्त प्रिय, गजगामिनी, स्वच्छ कमल-समूह के समान कोमल शरीरवाली, पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान शीतल शयनतल में
इस प्रकार त्रेषठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का कुमारीविवाह-कल्याण नाम का चौथा परिच्छेद समाप्त हुआ॥४॥
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