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तिराजागृहं
दादिति वारणवस ठिया की समास हरि मेहसवंतिसुगंधसलिलई दि मुदाइंस्पिरुजास इंविमलई आयासु विदी सइमलम जिड़ गोल लायगुणसम्म जिउ । मंदर मदंडविहरियठे पक्कळणं कुमरहो। रिष तारामोत्तियदाम। दिलमिट एकजोरागड सबडपासि: महिसर चल खलतिचउपा सेहिं वरमहाद्यास हि सरलियहि पंणय) दिपणियतिमड रुइ मरुचलिम हि परिघुलियति वेला लयहि पण रचना पियगुणरयणमियर करमंजरिध्वलियणि विश्वंसने विसरिससु कम सादिसाहा सिउवह रायस काणाम करण धूला करणाइ मधुविकय विसेस विराइन जागणी जोर फलाइवा विहलियलाय कप्पवाइथ हवाणामयदिंडप वसुव मित्र क्तिसंग हण्णिवसुव उपसंसापयासमग्गे। इव रायसायन सिगोइव पिटस हावसंच उत्रढोश्व वधुणेह वक्षणवेदाश्व किंकरयाचितामणिचिव अरिमदिदर मिरसो
मानो (लोगों के) दान देने पर हाथी वन में चले जाते हैं, मनुष्य हर्ष से क्यों उत्कण्ठित नहीं होते। मेघ सुगन्धित जल बरसाते हैं, दिशाओं के मुख अत्यन्त निर्मल हो जाते हैं, आकाश भी मल से रहित दिखाई देता है मानों नीले बर्तन को माँजकर खूब साफ कर दिया गया हो, या मानो मन्दराचल के दण्ड पर आधारित एक छत्र कुमार के ऊपर रख दिया गया है। "ताराओं के समान मोतियों से विभूषित यह राजा सबसे श्रेष्ठ है, "मानों धरती चारों और महानदियों के घोषों से कलकल करती हुई और दुष्टों को हटाती हुई यही कहती है। घत्ता-सरोवर के कमलोंरूपी नेत्रों से तुम्हें देखती हुई (धरती) मुझे (कवि को) अच्छी लगती है, हवाओं से चंचल और आन्दोलित लतारूपी बाहुओं से मानो वह नृत्य करती है ॥ ३ ॥
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अपने गुणरत्नसमूह की किरण मंजरी से राजवंश को धवलित करनेवाला और असामान्य पुण्य वृक्ष की शाखा से आश्रित वह राजहंस बड़ा होने लगा। नामकरण और चूड़ाकरण आदि उसका सब कुछ विशेष शोभा के साथ किया गया। जो माँ के यौवनरूपी फल के गुच्छे के समान, बिह्वल लोगों के लिए कल्पवृक्ष के समान, सुधि-वचनामृत के लिए बिन्दु प्रवेश के समान, मित्रों के चित्तों के संग्रह के लिए आश्रय स्थान के समान, गुणों की प्रशंसा के लिए प्रकाशन मार्ग के समान, रोग और शोक से रहित स्वर्ग के समान, पिता के स्वभाव संचय के समान बन्धुस्नेह के बन्धन से घिरे हुए के समान, अनुचर जनों के लिए चिन्तामणि के समान, शत्रुरूपी पर्वतों के सिरों के लिए गाज के समान,
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