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द्यमाणविवानिदिलणामसूत्राधनिही दिया हरण करण उद्दरणविही विद्या, लार सोदगरुन यरुमदा विवाहरिसोय साहिविव इणिदालन झष्णरचा विथ वादे जाि पवा विवाह दुपदा हसरा इवा विलयानंदकसम्म सरोवर सिरियल । मदि सिदले जयजयसिरिजयकारिणि अयुनियस मुहेसरस । किञ्चित्रिलोय विहारि
रचिता गिरिसरि कलस कुलिस कम्लेक्स दिसत्रासलरकरणादिङ सुरण रखर मणिवाणाश्वगाश्य जुस पसाहि सोगनिवडिय पाइपया विविदिणा घडि 3 अलेविललिविना इाजीवर जास्सारणाई सिम्हिणी वश च इयमत्रुणरविणा संघइ जडसँग विमजायालं घर पालियवेजस मयरोल जासुरगणा वथिउजमुकाल 3. गाजरा उनकी डलर चंडविज्ञाय चंदोहिल्लउ परकेपरक सौदी सहलगाठ पवणुवि गमण ज्ञास होल इडविदधगुणाई अजवितते हवजणु आई। पिखकर पह रणुक हिमिणदावर विणणजिक धरावालिजेल चला चुवमयजल महि हरक्षित्रि वियारण विहिय सराकंनियकर जसुतसंतिदिवारण शरिचिता ॥ करिसिरिहा ४१
निखिल न्याय और सद्भाव की निधि के समान, नाश-निर्माण और उद्धार में विधाता के समान, भार सहन करनेवाली धरती के समान, भूरिभोग ( प्रचुर फन / प्रचुर भोग) वाले नाग के समान, दुर्दर्शनीय मध्याह्न रवि के समान, इन्द्र के वज्र के समान वज्र शरीर, सौन्दर्य समुद्र के प्रवाह के समान, वनिता समूह के लिए कामदेव के समान था।
धत्ता - जिसके वक्षःस्थल पर लक्ष्मी, असिदल पर धरती, बाहुओं में जय करनेवाली जयश्री और मुख में सरस्वती निवास करती है और जिसकी कीर्ति तीनों लोकों में विहार करनेवाली है ॥ ४ ॥
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जो गिरि, नदी, कलश, बज्र, कमल, अंकुश, वृषभ और मत्स्य के लक्षणों से अंकित है तथा जो सुरों, नरों एवं विद्याधरों की वनिताओं की वीणाध्वनि में गाया जाता है। जो यश से प्रसाधित है। जो मानो (कसौटी
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पर) कसा गया सौभाग्यपुंज है, मानो जिसे प्रयास से विधाता ने गढ़ा है, जिसके भय से आग जल जलकर अंगार होती है, जीवित नहीं रहती, और अन्त में शान्त हो जाती है। समुद्र यद्यपि प्रमादी है, फिर भी (जिसके डर से) स्थिर नहीं रहता, जड़ का (जल, जड़) संग करने पर भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, जिस भरत की मर्यादा का समुद्र पालन करता है, जिसके भय से यम स्थिर हो गया है, जिसके लिए नागराज एक क्षुद्र क्रीड़ा है। चन्द्रमा भी जिसके लिए मयूरचन्द्र के समान है। वह (चन्द्रमा) पक्ष पक्ष में क्षीण होता दिखाई देता है और पवन भी जिसके भय से चलने का अभ्यास करने लगा है। इन्द्र भी अपने धनुष पर डोरी नहीं चढ़ाता, और आज भी लोग उसी रूप में जानते हैं। वह अपने हाथ में शस्त्र कभी नहीं दिखाता। वह विनय से विनम्र होकर घर आता है।
घत्ता—जो अलिकुल से चंचल हैं, जिनसे मदजल चू रहा है, जो पहाड़ों की दीवारों का विदारण करनेवाले हैं, जो गर्जना नहीं कर रहे हैं, जिनकी सूँडे टेढ़ी हैं, ऐसे दिग्गज जिससे त्रस्त रहते हैं ॥ ५ ॥
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