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णायलतानामलंदोलाजसवालोणादिष्टासाहमाणाणवणलिणदंशावणियमाणा सुरखर
पथालत्रयालिनतारं निघडियदीधशालारणार दरिसराटनगलियूरियरमाणु समाकंतपत्रा रनिजिन्नसा करिदसणानिलिनसोवलराय सिविनयगय पढ़ासेलरोय संसहरमलकारतूदीर निसाय रविमविमुनाहरत दिसाए सयदलदलालविरुटतलिंग सरचरमसारिहतितपिंगद सदिसिवकापिरंगतसंग जलवलणपखालियहिदासग अमरिसकासकालण्हतमई कमिय
जमोमतीचा दवीनंह
अपने यश से अत्यधिक शोभित यशोवती इस प्रकार सो रही थी मानो नवकमलों पर हंसिनी सो रही हो। निकलते हुए सूर्य को, भ्रमरों से गूंजते हुए कमलों से युक्त और अद्वितीय पराग से पीले सरोवर को, जो स्वप्न में उसने एक शैलराज देखा जिसके तट देव-बालाओं के पैरों के आलक्तक से आरक्त थे, जिसकी अत्यन्त वेगशील लहरों से दशों दिशाओं में चंचल है, जो जलों के स्खलन से गिरिशिखरों का प्रक्षालन घाटियों के रन्ध्रों से गम्भीररूप से जल गिर रहा था, जिसके शिखर सिंहों और श्वापदों की गर्जनाओं से करनेवाला है, जिसमें अमर्ष से भरे हुए मत्स्यों का उत्फाल शब्द उठ रहा है, ऐसे मत्स्यों और मगरों से भयंकर निनादित थे, अपने चन्द्रकान्त मणियों की आभा से जिसने सूर्यबिम्ब को जीत लिया था। जिसने हाथी-दाँतों समुद्र को उसने देखा। से स्वर्णराग को निस्तेज कर दिया था। (फिर उसने देखा) निशा के अलंकारभूत चन्द्रमा को, पूर्वदिशा से
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