________________
पवाहारुविसाचेवसणि वजमविसाहारणाण कम्माखायसमजणाए सहसासश्सुखोल एण नहिरकणुकिनहिंदोलएण थिखणळमडधाराविषम किंजपावणाहिंतहिंपुणपवेसनबासि
रंखाणामालियाहि आइलामणश्वालि
याहिता यामे दिनाथकीसत्ता
लियणदासुमजा लिहिंदविहिरंगेय
উদভ্রানি इहियहि मोदिज
करणादिनाथ गुमगणमायणि
आग३॥ जय हिंगणवम्मद
BSP लहियहिरिएजसहिया अहिणवकुठरो सुवनिहियरा वसुखडोलश्वयुमशेळ। विख्यणडेदिणाणाविमारचारादनासविगहार अपमादेहयरिठवाणसिप करणहंहो ३०
इसी को अन्यत्र प्रत्याहार कहा जाता है। वाद्यों की मार्जन, सन्धारण और संमार्जन आदि कारवी क्रिया कर सहसा कानों को सुख देनेवाले हिन्दोलराग से गान शुरू किया गया। फिर आनन्दित होती हुई उर्वशी, रम्भा, अहिल्या और मेनका आदि नर्तकियों ने स्थिरवर्ण छटक और धारा से (त्रयताल) युक्त प्रवेश किया।
पत्ता-जिन्होंने नवकुसुमों की अंजली छोड़ी है ऐसी, रंगशाला में प्रवेश करती हुई देवियों ने कामबाणों को छोड़ती हुई कामदेव की धनुषलताओं के साथ लोगों को मोहित कर लिया।॥१७॥
अभिनय में निपुण, भुजाओं में अप्सराओं को धारण कर इन्द्र नृत्य करता है, धरती हिल जाती है। नटों ने नाना प्रकार के चारी और बत्तीस अंगहारों की रचना की। एक-दूसरे की देह (शरीरावयव) की स्थापना से विभक्त, एक सौ आठ करणों (शरीर की विभिन्न भंगिमाओं) का प्रदर्शन किया।
For Private & Personal use only
Jan Education Internation
www.jainei75/org