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श्रादिना जसव रणी
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उदीर हे निलन गांदरुणा सावडघुसितिल उ समालठिमा विकुघुलित रघुपालु एंगस हसरा गलिडे मुक्कन जिगुणमुद्दा पिय रायपुं नमः मरण जलनिहिजलेपइह दिसिकंज रकुंलय लुदिह अरुणóविरंजिय मारयड दिए सिरिणसिरिणारिहतणउंग बाढडेविनपाल इवास गंगा स्यम्पुरमाणामरासु लकी हेलरंतिहेक एयवयु णिकुडेनिकलसुवज लेणिवा वारिदिए हन्निमा लोवा एंउल्टाउंगलवादी ॥ घला उपसंकादेवयसदिसमदि रंजिविराविपुरिया को संचारुरिवादविवादेंश्रयरिय रोहिया। कालसामलो उडदालो पत्तोसीयरो
लाल-लाल वह ऐसा दिखाई देता है मानो रति का घर हो, मानो पश्चिम दिशारूपी वधू का केशर का तिलक हो, मानो स्वर्ग की लक्ष्मी का माणिक्य गिर गया हो, मानो आकाश के सरोवर से लाल कमल गिर गया हो, मानो जिनवर में मुग्ध कामदेव ने अपने आप रागसमूह छोड़ दिया हो, समुद्र के जल में प्रविष्ट सूर्य का आधा बिम्ब ऐसा मालूम हुआ है मानो दिग्गज का कुम्भस्थल हो, मानो अपने सौन्दर्य से समुद्र के जल को रंजित करनेवाला, दिनलक्ष्मी का गर्भ च्युत हो गया हो, मानो विश्व में घूमकर भी आवास नहीं पाने के कारण रत्न (सूर्यरूपी रत्न) समुद्र में चला गया, मानो याद करती हुई लक्ष्मी का स्वर्ण वर्ण का कलश छूटकर जल में
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निमग्न हो गया हो, मानो समुद्र की लहरों की लक्ष्मी के द्वारा लुप्त विश्वभवनरूपी दीप शान्त हो गया हो। धत्ता- फिर सन्ध्यादेवता के समान धरती राग से रंजित होकर इस प्रकार चमक उठी, मानो अपनी लाल साड़ी पहनकर वह स्वामी के विवाह में आयी हो ।। १५ ।।
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तब काजल की तरह श्याम, नक्षत्ररूपी दाँतों से उज्ज्वल भयंकर तमरूपी निशाचर प्राप्त हुआ।
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