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उनयंचविलादि चंदणणचद्विादिष्कदामवेटियहिं धणेटिंसंजयहिं एकमेकवेडिंपोम पन्नलाइएहिं सामऊरकुलाहि सिचिमणविर ममंसिउपससिपसाहिटमहादेवा कामकादला हमाणस्वप्फलनवठियावदोयता जो पाणविषद्ध निणरावासोहाविद्यलाइका सवासहोतानसउलोड सरहोदावदेश नि मलहोजियाणविराज्य मंगलदोजिमंगलुगाम यउ परमद्विहिंजाणियसंवरही किंवरुद्धिपति वरदा किंमपुरुसणसमिहिछ किंजगमंडणमंड प्रालिदिर पविसाववायसवरिणही विधपिण सवणजयलुनिणहो विमणिमलईडलजा। ससहरदियरमंडलंचवन्नपिसाबणहाणायदोसरणपश्टाकिंकासिएपजगसेना
ऐसे चन्दन से चर्चित, पुष्पमालाओं से वेष्टित, जो मानो जल से भरे मेघों के समान हैं ऐसे एक-दूसरे के द्वारा ले जाये गये, कमल-पत्रों से ढके हुए स्वर्ण-कलशों से, काम, क्रोध, मोह, लोभ, मान, दम्भ और चपलता से रहित, पाप से दूर महान् आदिदेव (ऋषभ) को अभिषिक्त किया गया, पुनः पूजा गया, नमन किया गया, सराहा गया और प्रसाधित किया गया। ___घत्ता-जो जिनेन्द्र ज्ञानविशुद्ध स्वयंबुद्ध हैं, उन स्नात को-उस समुद्र को जलस्नान कराता है ! भक्त- लोक सूर्य को दीपक दिखाता है॥१४॥
निर्मल को भी स्नान कराया गया। मंगल का भी मंगल गाया गया। संवर को जाननेवाले दिगम्बर परमेष्ठी को अम्बर वस्त्र क्यों दिया गया? जो भूषणस्वरूप हैं उन्हें भूषण क्यों पहनाया गया, जो जगमण्डन हैं उनपर मण्डन क्यों किया गया? संसार के ऋण से मुक्त जिनके दोनों कानों को वज्रसूची से बेधकर मणिमय कुण्डल पहना दिये गये मानो चन्द्र और दिनकर के मण्डल हों, जो मानो चंचल राहु से भागकर नाभेय की शरण में आये हों।
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