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श्रादी स्वरपालाई विद्यावदेवांगना
माजेमठाइ गावकमला लहउसलुगाई कणविपसाविउँ सगमणि कयादिवाला विडसह साम कणविकारविवेल उदिषु कश्का समोरू अवरु विखासु शिवाकोविक कोविवरवरं शुकाचिदिपाल को विमदिसुम सुवल म कोविश्रप्पो डर हो एवम सोवत कोविसुहा रण परिसद अम्मादीरण छत्रा होइलर जोहो सुसुहिं पश्पण देत सूराणु दरि इडकिनमलेण कालनिमलिगुन होश्मषु ॥ जैरोहिया धूला धूरो क डिकिंकिणिस णिरुवमली लडकी लश्वानरंगश्वसनजकि पिधर इंडविर्तनथामेण धरण्डिक्वडव संवरेदि लडया राहतंगुलिधरेवि वलुओ कइओजिजिणे सरासु कंपावियमणिम हिरासु सोणा सासेायजा इतास नऊ संधेवर किरसत्रिकासु न पुला करण झपकअभि उम्मिलपचएणववयम्मि संघलचंद मुरुमापुरु हे देवंग वळवर निवसणेण घो
संतथि विमणि सण सुयल दो लिमदिमाएण चलपाणिवेणुहंडुग्गरण हनकंडनायणे ३२
और वह वहीं (मुखकमल पर) निबद्ध होकर नवकमलों पर लुब्ध भ्रमर की भाँति रह गया। किसी ने उस हंसगामी को हँसाया, किसी ने उन्हें भव्य स्वामी कहा। किसी ने उन्हें कोई खिलौना दिया- कपि, कीर, मोर और किसी ने कोई दूसरा सुन्दर खिलौना कोई देव मुर्गा बन गया, कोई श्रेष्ठ अश्व और कोई दिव्य गज । कोई मेष और महिष। कोई भुजबल में श्रेष्ठ मल्ल होकर ताल ठोकता है, सोते हुए बालक को कोई कानों को मधुर लगनेवाली लोरी गाकर झुलाता है।
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धूल से धूसरित, कटि में किंकिणियों का स्वरवाला और अनुपम लीलावाला बालक क्रीड़ा करता है, चलते-चलते जो कुछ भी पकड़ लेता है उसे इन्द्र भी अपनी पूरी शक्ति से नहीं छुड़ा पाता। उनकी छोटीसी अँगुली पकड़ने के लिए धरणेन्द्र और चन्द्र भी समर्थ नहीं हो पाते। मेदिनी और महीधर को कँपानेवाले जिनेश्वर के बल का कौन आकलन कर सकता है? वह उनके निश्वास से ही उड़ जाता है, आकाश को
धत्ता-हो-हो, तुम्हारी हो, सुख से सोओ, तुम्हें प्रणाम करता हुआ भूतगण प्रसन्न रहता है, ऋद्धि लाँघने की शक्ति किसके पास है? फिर चूड़ाकर्म हो जाने पर भली नववय प्रकट होनेपर सम्पूर्ण चन्द्रमण्डल प्राप्त करता है, और पाप के मल से किसी का भी मन मलिन नहीं होता ॥ ४ ॥
के समान मुखवाले, मरुदेवी महासती के पुत्र श्रेष्ठ, देवांग वस्त्र धारण करनेवाले, चंचल विविध आभूषणों से युक्त, बालक के द्वारा भुजक्रीड़ा से दिग्गज को हिलानेवाले, चंचल हाथ से वेणु के अग्रभाग से आहत गेंद आकाश में उछलती हुई
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