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श्रादिनाथकी से वादेवकर।।।
समुलंच गांदी सइसयमघर होतंच पिमुक्की उपिहिमा गुणिसँगे कोण लहइस ग्रिवट तदसंचारिविणे समवयसचिव मिणदेश प्रदरेय दरसोनाइकेम दिसलामिखडस रुजेम्घा पडिलपुरिसन करणे रणाविदापसंग दिन वो घणलाविज्ञाम चडिठ गाय रामरहिमहिना कंचगोरखावागोन परिरकियाण्ड, णिववदिम्पठ सि रिरमणी रमण हामरंगुधरण्डिकंगनिवसिय्यु वरुणो वरिपायपरिडबैंड पवणामरेकरपल्लउशि
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वंच पणवंतपुरंदरेोदिहिर्दिषु उनसिहेसरसुणाडरणिमंत्र जस्किदवमरविजिज्ञमाणु समलाउ
ऐसी दिखाई देती है मानो देवेन्द्र के घर जा रही हो। जीव-रहित, परन्तु निर्दिष्ट मार्गवाला कौन गुणी की संगति से स्वर्ग प्राप्त नहीं करता? गिरती हुई बाल को वह चलाने के लिए ले जाता है और अपने समानवय बालकों को छूने तक नहीं देता । प्रहार प्रहार में वह इस प्रकार जाता है जिस प्रकार दिशा की मर्यादा के सम्मुख सूर्य । घत्ता - मानो पुरुष का रूप बनाने के लिए विधाता ने प्रतिबिम्ब संगृहीत किया था। जब वह नवयौवन को प्राप्त हुए तो नाग, नर और देवों के द्वारा पूजे गये ॥ ५ ॥
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स्वर्ण की तरह गोरे, समर्थ और ज्ञानरत, प्रजा की रक्षा करनेवाले और राजाओं के द्वारा वन्दित चरण । लक्ष्मीरूपी सुन्दरी के रमण के लिए विस्तीर्ण रंगभूमि, धरणेन्द्र की गोद में अपना शरीर रखते हुए, वरुण के ऊपर पैर स्थापित करते हुए, पवनदेव पर हथेली डालते हुए, प्रणाम करती हुई इन्द्राणी पर दृष्टि देते हुए. उर्वशी का सरस नाटक देखते हुए कुबेर के चमरों से हवा किये जाते हुए, समभाव से
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