________________
में पहश्यमन णिसिविहाण मडयसमार्ण महमुद धणकणखई पहसमसंत कारिमजत हिंड दियदनिवडशविरहे तरुणियाणकर घसदरणहरवाहिबिस्लाण काराण पित्रपलित सिं लपसिनं पक्षणपढ्गा माणविर्यगासेर्वताणागुणवंताण होइनयुके बहकायना परस सनवाहासमसदिन विढिमरयवधयरु श्मसुडलहरदयाह तकदसेवविनुसुणरू
जलहिया ताकलकारिणा नामधियारिणा सुहहलसाहिणा सणिमादिणाला सालोकन सुरमरखमरसेव सबटनरजमुमरस्युदेव सुमन्तवडक डहविडहिचला चुवाश्यकटतहोमरासीरूसजिअसश्सरउसराससबउदियमुहसवण्डोइससह ईपरलोयावलोइसवमर्ससारुअसारुजविलक्ष्महउवरोदेवप्पत विकलर्दसवाणिवख यणकमल परिणहिंसमपर्दपणाणिदिडमलुतं नियुणेविजिपणिमसीमधुपवि थिठहा मुसविमपुणेवि चितश्परमेसस्यवदिवचण्यविणयारिसिरिघरिर्वच अज्ञविम हुवरियावरणकम सहिलखछबर्हगम्मुताजाणविणिमतगमतरंग समर्दिलियरमणार मणरंग सहयाकुलणार्टपेसिहि पवणाहरणाहविह्नसियहि धनताकळमेहाकळाहिब
प्रमत्त की तरह पड़ जाता है रात में, सोये हुए मृतक के समान। (सवेरे) मूर्ख उठता है, धनकण से लुब्ध। विद्याधरों ने जिनकी सेवा की है ऐसे हे देव, यह सच है कि मनुष्य-जन्म सुन्दर नहीं है, वह सुख चाहता कृत्रिम यन्त्र के समान, पथ के श्रम से थका हुआ, दिन में घूमता है। प्राणों को हरण करनेवाली युवतियों के । है, परन्तु दुःख भोगता है। बड़े होनेपर बुद्धिरूपी आँख चली जाती है, मौत से डरता है, परन्तु यम से नहीं विरह में पड़ता है। रोग से ग्रस्त, भूख से खिन्न, पित्त से प्रदीप्त, श्लेष्मा से युक्त, पवन से भग्न, मानव-स्त्रियों चूकता। सचमुच मनुष्य शरीर अपवित्रता से जन्मा है। सचमुच इन्द्रियसुख सुख नहीं होता। सचमुच तुम के शरीर का सेवन करते हुए गुणवानों को सुख नहीं होता, दुःख ही बढ़ता है।
परलोक में सुख की इच्छा में कुशल हो। सचमुच यद्यपि संसार असार है तब भी हे सुभट, मेरे अनुरोध से घत्ता-दूसरे से उत्पन्न, सैकड़ों व्याधियों से युक्त, क्षायिक कर्मरूपी बन्ध का करनेवाला जो सुख इन्द्रियों सुन्दर हंस की तरह बाणीवाली श्रेष्ठ कमलमुखी दो प्रणयिनियों से प्रणयपूर्वक विवाह कर लो।" यह सुनकर से प्राप्त है, विद्वान् उसका सेवन क्यों करता है?"॥७॥
ऋषभजिन अपना सिर हिलाते हुए और होनहार का विचार कर नीचा मुख करके स्थित हो गये। अवधिज्ञानी नय-विनय के विचारक लक्ष्मीरूपी गृहिणी के कान्त परमेश्वर अपने मन में सोचते हैं-"आज भी मुझमें
चारित्रावरण कर्म है, जो तेरह लाख पूर्व तक अलंध्य है।" तब अपने पत्र के अन्तरंग को, यह जानकर कि तब न्याय का विचार करनेवाले शुभफल के वृक्ष कुलकर स्वामी (नाभिराज) ने कहा-"सुर, नर और वह रमणियों से रमण करने का इच्छुक है, कुलकर नाभिराज के द्वारा प्रेषित और रत्नाभूषण से विभूषित
Jain Education Internaan
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org