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उसकूलकखंड दियर तहोतंय सिपाई दिलु समे विचवपुजाइ जोसुरगिरिसात दोन वायी दु. जंमहिमंडलुततेागदू, अंजयतत हो जस पसरला पडतत होणाय्यमाणु जोअलनिहियात हो काय ओवम्मइमोश्यमुकंडु जोवकरिसोवा दणु मधु सावित होसिंहा सोविडु पसुकामश्रेणुदय सहिमा! हे जसे विद्याविहीन जो वाणरूरख सो कटुकटु देवेण समापुण कविदिता सुरकिंकरदास मुखड्घ खावा रिजार्ह तिड पडतुपरमेसर सिरिरवेला सुकिरण मितहिं | अजरुदिया। ससवली लियाका लणसालिया पडणा दाविया के लाविया पविश्य विविकीला धियार स मर्यरमतिसुरवर कुमार तपुते उदामियतरणिर्विव घग्घरमाला!
कलंकित और खण्डित हो गया। सूर्य उनके तेज से जीता जाकर मानो आकाश में घूमकर अस्त को प्राप्त होता है। जो सुमेरु पर्वत है वह उनका स्नानपीठ है, जो धरतीमण्डल है उसे उन्होंने ग्रहण कर लिया। जो जग है, वह उनके यश के प्रसार का स्थान है जो नभ है, वह उनके ज्ञान का प्रमाण है; जो समुद्र है, वह उनके शरीर के प्रक्षालन का कुण्ड है। जो कामदेव है, उसने डर से अपना धनुष छोड़ दिया है; जो ऐरावत है, वह मदान्ध वाहन है। सिंह भी उनके सिंहासन से बाँध दिया गया है; कामधेनु पशु है, जिसने अपने हित के कारण को नष्ट कर दिया है जो बाघ है, वह भी पापी जीव है जो कल्पवृक्ष है वह भी काष्ठ (कष्ट) कहा जाता है। देव के समान कोई भी दिखाई नहीं दिया।
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भिमनिधूलीमरुववकडिल सदजायकचिलकोतल टिषु पिवरमपिहिलइहायोगी अमरिंदाणियदिककरण णिज्ञश्चरसंघिय मुक्थरयणु जेपनि क्लोइठसुवमण सातर्हिजिनिव
घत्ता- जहाँ देव, अनुचर, अप्सराएँ, दासियाँ और इन्द्र घर में काम करनेवाले हैं, और त्रिभुवन ही परमेश्वर का कुटुम्ब है, वहाँ मैं उनके विलास का क्या वर्णन करूँ ? ॥ ३ ॥
मरुदेव्या श्रादि नाथ लश्कर रेस
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शैशव की क्रीड़ाशील जो लीलाएँ प्रभु ने दिखायीं वे किसे अच्छी नहीं लगीं! विविध क्रीड़ा-विलास रचनेवाले सुरवर कुमार उनके साथ खेलते हैं, जिन्होंने (जिनने) शरीर के तेज से सूर्यबिम्ब को पराजित कर दिया है, जिनका नितम्ब (कटि प्रदेश) घुंघरूओं की माला से अलंकृत है, जो कटिसूत्र से रहित और धूलधूसरित हैं, जो सहज उत्पन्न कपिल केशों से जटा युक्त हैं, ऐसे ऋषभ बालक को राजरानियों और देवों की इन्द्राणियों ने हाथों-हाथ लिया। जिसने भी उनका मुग्ध मुख देखा उसने अपने चिरसंचित पुण्यरत्न को जान लिया,
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