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पिंगला दोणाम देता हृयाले रिकवरी मुयंग संखताळ काहला काया खिझिसहि पाणिपायकुंचिखाई वाईवा वाकया । यज का किलरेदिखयरे हिंस्रक सहिणा या ईणी सयहि चायपरिपूरियतिरेतरं पाहेन रेलवेत लावलाविपदि वालुदेसगामिण हिं इंदवेदकामिणीहि गाईया मंगलाई दुखदोवपूजनीय महिया काहिता निम्मियाणिया लाई उद्धवहनिचारुचा रमंडवे क्रूरतम परिमंड के लोयता व कारण कठियाइव किया इंष्टि के सहि नायरेणसायरेणा सासणा मरे वरेप उसका गंधच कुन दीवतोयतंडल यजम्युलायम निवेसिकणा सक्वचिश्चिकालनेरियम वानिले कुवेरसलिसमर्किणमंतवि यविदियुहा व हंसमागमे समा सियसमा सिकरण जायदेवणं दवडूसिद्ध इस इसा लसामिसालला णिऊण दोहपहिं दोधरहिंस्वधर्हिचित्र वित्रसंयुहिंमाणिऊण मंदिरठिवतियाएव देवपति दायख रसायरतियाए दोमयं कमतियापसंतियायकतिया यजतियाय पंतियाए हारदार कंविदाम! वेलस तर्कक पालिडला हिल सि पहि आश्वीय का संगमेहिं आसपासिपदिसम्मया हिला सिए हिं श्रजोय गोवरे हि एक्ककंठ विचरज्ञियं निहि इंदापयति यहि पाणिणापडिडिएदि २१
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इतने में तूर्यवादक देवों के द्वारा भेरी, झल्लरी, मृदंग, शंख, ताल और कोलाहल आदि वाद्य बजा दिये। गये। अपने हाथ-पैर आकुंचित करते हुए वामन और कुबड़े नाचने लगे। आये हुए भूत, यक्ष, किन्नरों, विद्याधरों, राक्षसों, सैकड़ों नाग-नागिनियों के द्वारा अनुराग से भरकर निरन्तर आकाश गुँजा दिया गया। बालहंस के समान चलनेवाली इन्द्र और चन्द्र की महिलाओं के द्वारा मंगल गीत गाये गये। दर्भ, दूब, अपूप, बीज और मिट्टी के कणों से निर्मल मंगल रचे गये। ऊपर बँधे हुए चिकने और सुन्दर कपड़े के मण्डप में, चमकते हुए मोतियों से अलंकृत कर लोक-सन्ताप की कारणरूप कुत्सित इच्छाओं को छोड़कर, चतुर इन्द्र ने आदरपूर्वक शासन देवों को आह्वान कर और सन्तुष्ट कर, गन्ध, धूप, फूल, दीप, जल, तन्दुल और अन्न
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आदि यज्ञांशों को रखकर, इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, अर्णव, पवन, कुबेर और ईशान दिग्पालों की अर्चना कर, मंत्रपूर्वक जिन आगम में प्रतिपादित सुखद विधि का आश्रय लेकर हे देव जियो, प्रसन्न होओ, बढ़ो, हे सिद्ध बुद्ध-शुद्धाचरणवाले स्वामिश्रेष्ठ, यह कहकर दोहों, बोधकों, स्कंधकों, चित्रवृत्तोंवाली स्तुतियों से मानकर, मन्दराचल को छूनेवाली, तथा क्षीरसमुद्र तक फैली हुई, आकाश का अतिक्रमण करती हुई, दौड़ती हुई, ठहरती हुई, जाती हुई आती हुई, बँधी हुई देवपंक्ति के द्वारा हार, दोर, स्वर्ण, करधनी, यज्ञोपवीत, कंगनपंक्ति और कुण्डल आभूषणों से अलंकृत, आसनों पर स्थित सम्यक् अभिलाषा रखनेवाले, आठ योजन लम्बे और एक योजन विस्तृत मेघपटल को नष्ट करनेवाले लो यह कहते हुए प्रथम और द्वितीय स्वर्ग के देवेन्द्रों के द्वारा हाथ से दिये गये, जिनसे जल की बूँदें गिर रही हैं।
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