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णवहार पंकमदेसरायसखि कस्मारयापंपिंजरिवणकुंजकललखलिल कड्यालगलि यमयपरिमलिउ संचस्थिसिलामुहचिन्नलिशाणामणिकिरणदिसेवलि परिचालसिहरिदही
प्रीदिनाथका फलसातिषकुक रिजरसकरने
नणंठीणचबमष्परियण पदिनहसदिमहियलिणरदिपायालिपडतमविसहरदिपावन विवाउचख बंदिउसबदहाणखलाला। इनियगुस्सवाचनविहदेव हरिसकहवमर्मति उह तपडतापुटपडता वारवारपणमति केणविवाइनवाइयट केसविसुमिहउगाश्यम केवि
कमलपराग की धूल से धूसरित, केशर की लालिमा से पीला, वनगजों के गण्डस्थलों से पतित, गजकपोलों घत्ता-गुरु की सेवा की इच्छा रखनेवाले चार प्रकार के देव हर्ष से कहीं भी जल का नमस्कार करते से झरते हुए मदजल से सुगन्धित, चलते हुए भ्रमरों से चित्रित नाना मणि-किरणों से मिश्रित स्नानजल ऐसा हैं। उठते-पड़ते सामने नाचते हुए वे बार-बार प्रणाम करते हैं॥१७॥ लगता है मानो सुमेरु पर्वत का पचरंगा दुपट्टा उड़ रहा हो। नभ में नभचरों, धरती पर मनुष्यों और पाताल में विषधरों ने सर्वज्ञ के गिरते, दौड़ते, ठहरते, विगलित होते. चंचल स्नानजल की वन्दना की।
किसी ने बाजा बजाया, किसी ने श्रुतिमधुर गाना गाया, किसी ने
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