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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ६९ ॥
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वेदके अनुवादकरि तीही वेदनिमें मिथ्यादृष्टितें लगाय अनिवृत्तिवादरतांई नव गुणस्थान हैं । वेदरहित गुणस्थान अनिवृत्तिवादरतें लगाय अयोगकेवलीपर्यंत छह गुणस्थान हैं । इहां अनिवृत्ति बादरसांपरायके छह भाग कीये । तहां तीन भाग आदिकैमें वेद है । अंतके तीन भाग वेदरहित । तातें दोऊ जायगा गिण्या ॥
कषायके अनुवादकरि क्रोध-मान-मायाविर्षे तौ मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई नव गुणस्थान हैं । लोभ कषायविर्षे तेही सूक्ष्मसांपराय अधिक दश गुणस्थान हैं । बहुरि कपायरहित उपशांतकषायतें लगाय अयोगकेवलीताई च्यारि गुणस्थान हैं ।
ज्ञानके अनुवादकरि मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान विभंग इनि तीनविर्षे मिथ्यादृष्टि | सासादनसम्यग्दृष्टि हैं । मति श्रुत अवधि इनि तीन ज्ञाननिविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि आदि
क्षीणकषायपर्यंत नव गुणस्थान हैं । मनःपर्यय ज्ञानविर्षे प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकषायपर्यंत सात | गुणस्थान हैं । केवलज्ञानविर्षे सयोगकेवली अयोगकेवली दोय गुणस्थान हैं।
संयमके अनुवादकरि संयमी तौ प्रमत्त आदि अयोगकेवलीताई । तहां सामयिक छेदोपस्थापनशुद्धि संयमी तौ प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपराय गुणस्थानताई च्यारि हैं । परिहारविशुद्धिसंयमी |
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