________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३८३ ॥ | विनाछत्रवाले साथी हैं, तेभी जानि लेने । तैसें इहां मुख्यके कहेही गौणका ग्रहण कीया है । तहां यहु अर्थ सूत्रतें ऐसें जानना, जो, दोय युगलमें पीतलेश्या कही तहां दूसरे युगलमें पद्मलेश्या है, तथापि गौण है, तातें ताकी विवक्षा न करी । बहुरि तीनि युगलमें पद्मलेश्या कही। शुक्र महाशुक्रमें शुक्ललेश्या है, तथापि गौण है । तातें ताकी विवक्षा न करी । बहुरि वाकी शतार आदि सर्वविर्षे शुक्ललेश्या कही। तहां शतारसहस्रारविर्षे पद्मलेश्या है, तथापि गौण है । तातें ताकी विवक्षा न करी, तातें दोष नाहीं ॥
इहां कोई पूछे, विनाअवसर लेश्याका सूत्र कैसें है? ताका समाधान- जो, सूत्रके लघु करणेंके अर्थि है । और ठौर कहैतें ऐसा क्रम न कह्या जाता, तातें इहां कह्या है, लेश्या हैं ते निर्देश वर्ण परिणाम संक्रम कर्म लक्षण गति स्वामित्व साधन संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल अंतर भाव अल्पबहुत्व ए सोलह अनुयोगनिकरि साधिये है । तिनका कथन तत्त्वार्थवार्तिक तथा गोमटसारतें जानना । तहां पूछे है कि, कल्पोपपन्ना ऐसें पूर्व कहा है, तहां ऐसा न जानना, जो, कल्प कौन हैं ? ऐसें पूछे सूत्र कहैं हैं
॥ प्राग्वेयकेन्यः कल्पाः ॥ २३ ॥
artierritairezarraikeertisxerciseriessertato
For Private and Personal Use Only