________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ४९४ ॥ जहां धरी चाहिये तहां न धरणां जैसे तैसें हरेक जायगा धरणां । बहुरि संयोग दोय प्रकार। तहां भुक्तपानसंयोगाधिकरण कहिये भोजनपानका मिलावणां। उपकरणसंयोगाधिकरण कहिये जिन वस्तुनितें कार्य किया चाहिये तिन उपकरणनिका संयोग करणां मिलावनां । बहुरि निसर्ग तीनिप्रकार। तहां कायनिसर्गाधिकरण कहिये कायका प्रवर्तन करना । वाग्निसर्गाधिकरण कहिये वचनका प्रवर्तन करना । मनोनिसर्गाधिकरण कहिये मनका प्रवर्तन करना । इहां भावार्थ ऐसा जानना, जो जीव अजीव द्रव्य हैं तिनकै आश्रय आधारकरि कर्मका आश्रव होय है, तिनके भावनिके ए विशेष हैं । ऐसें सामान्यकरि तौ आश्रक्के भेद कहे ।।
अब कर्मनिके विशेषकरि आश्रयके भेद कहनेकू वक्तव्य होते आदिके ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म तिनके आश्रवके भेद जाननेकू सूत्र कहें हैं
॥ तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥ १० ॥
याका अर्थ-तिस ज्ञानदर्शनके विष प्रदोष निन्हव मात्सर्य अंतराय आसादन उपघात इनका करना, सो इन दोऊनिकै आवरणकर्मनिका आश्रव करै है। तहां मोक्षका कारण जो तत्व| ज्ञान ताका कोई पुरुष कथन प्रशंसा करता होय ताकू कोई सराहै. नाहीं तथा ताकू सुणिकरि आप |
For Private and Personal Use Only