Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 783
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७६५ ।। इनतें न्यारा न होय तबभी परिग्रहसहितही कहिये है। बहुरि वशि कीया है अन्य कषायका उदय ज्यां अर संज्वलनकषायमात्रके आधीन हैं ते कषायकुशील हैं। इहां ऐसा जानना, जो, संज्वलनकषायका स्थानक जिनकरि प्रमाद व्यक्त होय ऐसा जाकै उदय न होय, ते कषायकुशील हैं। बहुरि जिनकै मोहका उदयका तौ अभाव होय अरु अन्यकर्मका उदय है, सो ऐसा है; जैसे जलकेविर्षे मंदमंद लहरिका हालना होय तैसें प्रदेशनिका तथा उपयोगका चलना मंद होय है, जो, व्यक्त अनुभवगोचर नाहीं है, बहुरि मुहूर्तते उपरि उपजें हैं केवलज्ञानदर्शन जिनकू ऐसे निग्रंथ हैं । बहुरि अत्यंत नाश भये हैं घातिकर्म जिनके ऐसे दोयगुणस्थानवर्ती केवली ते स्नातक हैं। स्नात वेदसमाप्तौ धातु ताकरि स्नातकशद है, सो सम्पूर्णज्ञानके अर्थमें है । ऐसें ए पांचहू चारित्रपरिणामकी हानिवृद्धि” भेद होतेभी नैगमसंग्रहादिनयकी अपेक्षाकरि निग्रंथही हैं। इहां विशेष कहिये हैं । इहां इनका दृष्टांत ऐसाभी है। जैसे ब्राह्मणजाति आचार अध्ययन | | आदिकरि भेदरूप है, तौऊ ब्रह्मणपणाकरि सर्वही ब्राह्मण हैं, तैसें इहांभी जानना । तत्वार्थ| वार्तिकमें ऐसें कह्या है, जो, सम्यग्दर्शन अर निग्रंथरूप वस्त्र आभूषण आयुध आदिका ग्रहणकरि || रहित ए दोऊरीति तो सर्वत्र मुनिनिकै समान है । यातें पांचूही भेदनिविर्षे निग्रंथशब्द युक्त है ।। aaspiraaspxsexessexranisexdadiseatsuperiesbeserters For Private and Personal Use Only

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