Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 815
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७९७ ॥ - आगें चौथे अध्यायमें ऊर्ध्वलोकका वर्णन है । तामें च्यारिप्रकारके देव कहे । तिनके लेश्या कहि । अर इन्द्र आदि दश भेद कहि । अर इन्द्रनिकी संख्या अर तिनका कामसेवनकी रीति कहि । बहुरि भवनवासीनिके भेद व्यंतरनिके भेद ज्योतिषीनिके भेद कहे । बहुरि ज्योतिषीनिका गमनका प्रकार अर मनुष्यक्षेत्रविर्षे इनकरि कालका विभाग है। मनुष्यक्षेत्रते परै अवस्थित है ऐसैं कह्या । आगे विमानवासी देव तिनविर्षे कल्प कल्पातीतका भेद बहुरि स्वर्गनिका नाम अर तिनके आयु आदि वधते वधते अर गमन आदि घटते उपरि उपरि है सो कहि तिनकी लेश्या कहि । ग्रेवेयक पहली कल्प कहे। बहुरि पांचमां स्वर्गमें लौकांतिक देव हैं तिनके जातिभेदके नाम कहे । बहुरि औपपादिक मनुष्यसिवाय रहे ते जीव सर्व तिर्यंच हैं ऐसे कह्या । आर्गे तिन देवनिकी आयुका निरूपणमें भवनवासीनिकी उत्कृष्टि कहि । अर स्वर्गवासीनिकी उत्कृष्ट जघन्य कही। अर नारकीनिकी जघन्य कही । भवनवासी व्यंतरनिकी जघन्य कही । अर उत्कृष्ट व्यंतर ज्योतिषीनिकी कही । ऐसें चौथा अध्याय पूर्ण कीया ॥४॥ आर्गे पांचमां अध्यायमें अजीवतत्वकू प्रधानकरि निरूपण है। तहां धर्मादि च्यारि अजीवास्तिकाय कहि । अर जीवास्तिकाय कह्या । तिन पांचनिकू द्रव्य कहे । तिनमें च्यारि अरूपी पुद्गल रूपी अर आकाशताई तीने एकएक द्रव्य क्रियारहित कहे । धर्म अधर्म एकजीवके असंख्यातप्रदेश कहे । आकाशके अनंत कहे । पुद्गलके स्कंध अपेक्षा ती प्रकार कहे । अणूके प्रदेश नाही, अर आकाशका उपकार, अवगाह, गति , स्थिति , धर्म, अधर्मका उपकार , शरीरादिक जीवकू पुद्गलके उपकार, जीवनिकें परस्पर कालद्रव्यका वर्तना उपकार कह्या । बहुरि पुद्गलके स्पर्श आदि | गुण शब्द आदि पर्याय कहे । अणुस्कंधभेद कहे। बहुरि द्रव्यका सत् सामान्यलक्षण कह्या । नित्यताका स्वरूप कया । Atertaioritrativartansertaisartabardas For Private and Personal Use Only

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