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॥सर्वार्थसिदिवचाधिका पंडित जीता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७९६ ॥ यताई कहे । बहुरि पांच इन्द्रियके द्रव्यइन्द्रिय भावइन्द्रियकरि भेद तिनके नाम विषय कहे । बहुरि एकइन्द्रिय आदि जीवनिके इन्द्रिय पाईये तिनका निरूपण अर संज्ञी जीव कौंन ऐसैं कह्या । बहुरि परभवकू जीव गमन करै ताका गमनका स्वरूप कह्या । आगें जन्मके भेद योनिके भेद अर गर्भज कैसे उपजै देव नारकी सन्मूर्छन कैसे उपजै ताका निर्णय है। आगे पांच शरीरनिके नाम कहि । अर तिनके सूक्ष्मस्थूलका स्वरूप कहि । अरु ये जिनकै जैसे उपजै तिनका निरूपण कीया। आगें वेद जिनकै जैसा होय ताक् कहिकरि जिनके उदय उदीरणाकरि मरण होय तिनका नियम कहि अध्याय पूर्ण कीया ॥ २॥
आगें तीसरा अध्यायमें जीवका रहनेका लोक है तामें अधोलोक मध्यलोकका निरूपण है। तामें अधोलोकमें सातपृथ्वीनिके नाम कहे तिनविर्षे नारकी जीव उपजे हैं। तिनके बिलनिका परिमाण कह्या । बहुरि जीवनिका अशुभपरिणाम आदि कहिकरि तिनकें परस्पर अर असुरानिकार कीया दुःख है ताकू कहि तिनकी आयुका परिमाण कह्या । आगें मध्यलोकविर्षे जंबूद्वीप आदि द्वीप लवणसमुद्र आदि समुद्र हैं तिनका व्यास आकार कह्या । बहुरि जंबूद्वीपका स्वरूप कहि ताके मध्य क्षेत्र हैं कुलाचल पर्वत हैं तिनका नाम वर्ण आकार कह्या । बहुरि कुलाचलानउपरि द्रह हैं तिनके नाम व्यासादिक बहुरि तिनमें कमल हैं तिनका व्यासादिक बहुरि तिनमें देवी वसैं हैं तिनके नाम परिवार आयु कही। आगे द्रहनिमेंसू नदी गंगादि निकली हैं तिनके नाम परिवार गमन कह्या । बहुरि भरतक्षेत्रका विस्तार कहि अन्यका विस्तार जनाया । बहुरि भरत ऐरावतक्षेत्रमें काल घटै वधै अन्यमें अवस्थित है ऐसैं कहिकरि भोगभूमिके जीवनिकी स्थिती कही । बहुरि भरतआदि क्षेत्र धातकीखंड पुष्करद्वीपमें हैं सो कहे । मनुष्यक्षेत्रकी मर्याद कही । कर्मभूमिके क्षेत्र कहे । बहुरि मनुष्यतिर्यंचनिकी आयुका प्रमाण कहि अध्याय पूर्ण कीया ॥३॥
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