Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve
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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । दशम अध्याय ॥ पान ७९८ ॥
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बहुरि मुख्यगौणकरि नयका लगावणा कह्या । बहुरि पुद्गलके स्कंध होनेका विधान कह्या । बहुरि द्रव्यका विशेष लक्षण कह्या । बहुरि कालद्रव्य कह्या । बहुरि गुणपर्यायका खरूप कहि पांचमां अध्याय पूर्ण कीया ॥५॥
___ आगें छठा अध्यायमें आश्रयतत्वका सामान्यनिरूपण है। तहां मनवचनकायके योगकों आश्रव कह्या । बहुरि पुण्य पाप दोय भेद कहे.। तहां सकपायीकै सांपरायिक आश्रव होइ अकषायीकै इर्यापथ होय । तहां सांपरायिककै इन्द्रियआदि भेद कहे तिनके तीव्र मंदादिक भावनिकरि विशेष कह्या । बहुरि आश्रवका अधिकरण जीव अजीव द्रव्यकों कहिकरि जीवाधिकरणके संरंभादिक एकसौ आठ भेद तथा इनके विशेषः अनेकभेद होना कह्या । बहुरि अजीवाधिकरणके | निर्वर्तनादिक अनेक भेद कहे । आगें अनुभागके तीन मंद बंध होने अपेक्षा न्यारे न्यारे आठकर्म तिनके आश्रव होनेके कारण कहे । तिनकू कहिकरि छठा अध्याय पूर्ण कीया ॥६॥
_ आगें सातमा अध्यायमें पुण्याश्रवका निरूपण है । तहां हिंसादिक पांच पापका त्यागते व्रत होय है ऐसा कहि, तिसके एकएक देश सर्व दुःखतें (2) अणुव्रत है ऐसा कहि । तिन व्रतनिके दृढ करनेकों पांच पांच भावना कहीं। बहुरि पांचपाप इसलोक परलोकमें दुःखदायी तथा दुःख कहे। तिनकी भावना राखणी । बहुरि मैत्री आदि च्यारि भावना कहीं । बहुरि संसार देहका स्वभावकी भावना कही। आगें पांच पापका लक्षण जुदाजुदा कह्या । व्रती निःशल्य होय मुनि अर गृहस्थ होय तहां गृहस्थके अणुव्रत अर दिग्विरति आदि सात शील कहे । बहुरि अंत सल्लेखना कही । बहुरि सम्यक्त्व एक पांच अणुव्रत सात शील एक सल्लेखना इन चौदहनिका पांचपांच अतीचार न्यारे न्यारे सूत्रतें कहे । बहुरि दानका अर तिसका विशेष कह्या । ऐसें सातमा अध्याय पूर्ण कीया ॥ ७ ॥
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