Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 821
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ८०३ ॥ बालपनेते विद्या सुनी ॥ पंडित भयौ बढी परवीन । ताहूने प्रेरण यह कीन ॥ ३१ ॥ कोई ग्रंथ वचनिका करो। जामें सब समझें इस धरौ ॥ मै हूं तवै विचारी एम । रची वचनिका यह धरि प्रेम ॥ ३२ ॥ हीनाधिक यामें कछू होय ॥ पंडित लोग सुधारो सोय ॥ ख्यातिलाभपूजाके हेतु । रची नाहि इम शुभफल हेतु ॥ ३३॥ चांचौ पढौ पढावौ सुनूं । तत्वारथकू जानू गुनू ॥ करौ प्रसिद्धि सवै धरि चाव । सतपुरुषनिको यहै स्वभाव ॥ ३४ ॥ होनाधिक लखि इंसियो नाहिं । अल्पबुद्धि में क्षमा कराहिं ।। यह मेरी प्रार्थना संभारि । अपनी उत्तमताकौं धारि ॥ ३५ ॥ ॥सवैया ॥ शब्दको उच्चार सोहै पुद्गलविकार और अक्षरमकार इच्छा जीवकी मिलै जवें । श्याही पत्र लेखनी हू पुद्गल दरवि जानूं क्रिया जीवके प्रदेश इच्छातें हलै तवें ॥ ग्रंथ रचनेको राग मोहको विकार शुभ ए तौ सवै पुद्गल है जीवको कहा फ3 । तातें करनेकौ अभिमान तजो पंडित हो चेतनास्वरूप आप लखौ यो भलै अवै ॥ ३६ ॥ दोहा- संवत्सर विक्रम तणूं । शिखि रस गज शशि अंक ॥ चैतशक्त तिथि पंचमी । पूरण पाठ निशंक ॥ ३७॥ ॥छप्पय ॥ मंगलमय अरहन सिद्ध मंगल विनिकाई । आचारज उवझाय साधु मंगल सुखदाई ।। For Private and Personal Use Only

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