Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve
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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ८०२ ॥
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पुराण वचनिका करी ॥ १९ ॥ रायमल्ल त्यागी गृहवास । महाराम व्रत शीलनिवास ॥ मैं हूं इनकी संगति ठानि । बुधि सारू जिनवाणी जानि ॥ २०॥ लखे पुराण आदि उत्तरा । और पुराण चरित्र जु खरा ॥ गोमटसार लब्धि पण सार । क्षपणसार तिलोक सुसार ॥ २१ ॥ टोडरमलकृत भाषा तणां । पाय सहाय संस्कृति भणा ।। मूलाचार श्रावकाचार । लखे विचारे बुद्धि अनुसार ॥ २२ ॥ समयसार अध्यातमसार । प्रवचनसार रहसि मन धारि ॥ पंचासतिकाया ए तीनि । नाटक त्रयो कहावै वीन ॥ २३ ॥ तत्वारथमूत्रकी टीका । सर्वार्थसिद्धि नाम सुठीका ॥ दूजी तत्वारथवार्तिका । श्लोकरूप वार्तिक तार्तिका ॥ २४ ॥ तिनको कछू कियौ अभ्यास । बुद्धि जिसी जिम पायौ ख्यास ॥ पद्धति न्यायतणी इनमांहि । सोभी किछ विचारी जाहि ॥ २५॥ ग्रंथ परीक्षामुख संभलो । है प्रमाणको वर्णन भलौ ॥ देवागमस्तुति टीकासार । अष्टसहस्री नाम सुधार ।। २६ ॥ आप्तपरीक्षा देखी सार। अर प्रमाणनिर्णय निरधार ॥ न्यायदीपिका सुगमपचार। सो पहलै पढनेमें सार ॥ २७ ॥ देवसेनकृन गाथाबंध । है नयचक्र बडौ अरबंध ॥ और ग्रंथ जिनमतमें धणे। पाये जे शुभविधिवश वणे ॥ २८॥ तेभी कछु विचारे जवै। स्याद्वादमैं समझे तवै ।। नयप्रमाणकी कथनी महां । गुरुविन वार न पावै जहां ॥ २९ ॥ पै अभ्यास जोर बहु कीयौ । बीजरूप सामान्य जु लीयो ।। और ग्रंथ बुधिसारू लखे। अपने मत परके मत अखे ॥ ३० ॥ नंदलाल मेरा सुत गुनी ।
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