Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 818
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ८०० ॥ ఆహrtosteroneticineinterdicinetasserticles ऐसे मोक्षमार्गका निरूपणखरूप जो तत्वार्थशास्त्र ताके दश अध्यायका कथन• नीकै धारणकरि भव्यजीव हैं ते मोक्षमार्गमें प्रवर्तनेका उद्यम करौ ज्यौं शाश्वता सुखरूप निर्वाणकी प्राप्ति होय ऐसा श्रीगुरुनिका उपदेश है। आगें इस वचनिकाके होनेका संबंध लिखिये हैं। . दोहा- इष्टदेवकों नमन करि, सरल चौपई बंध ।। इस भाषाके होनेका, कहूं हेतुसंबंध ॥ १ ॥ ॥ चौपई ॥ जंबूद्वीप भरत सुनिवेश । आरिज मध्य हुँदाहड देश ॥ पुर जयपुर तहां सूवस वसै । नृप जगतेश अनूपम लसै ॥२॥ ताके राजमाहिं सुख चैन । धरै लोक कहूं नाहीं फैन । अपने अपने मत सब चलें। शंक नाहिं घारै शुभ फलें ॥३॥ नृपके मंत्री सब मतिमान् । राजनीतिमें निपुण पुरान ॥ सर्वही नृपके हितकों चहैं । ईति भीति टारै सुख लहै ॥ ४ ॥ तिनमें रायचंद गुण धरै । तापरि कृपा भूप अति करै । ताकैं जैनधर्मकी लाग। सब जैननिस् अति अनुराग ॥ ५॥ करी प्रतिष्ठा मंदिर नयौ । चंद्रप्रभ जिन थापन थयौ ॥ ताकरि पुण्य बढौ यश भयो । सर्व जैनिनिको मन हरखयौ ॥६॥ ताके ढिंग हम थिरता पाय । करी वचनिका यह मन लाय ॥ यह तौ राजतणू संबंध । कह्यो सुणु अब अन्य निबंध ॥७॥ शैली तेरापंथ सुपन्थ । For Private and Personal Use Only

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